वर्णी वाणी भाग -४ | Varni Vani Bhag-4

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) प० ज ने कहा---आशीर्वादसे लाभ ? सैंने उत्तर दिया--जिन्हें आपके दो शब्द प्राप्त हो जाते है, उनकी श्रारक्रा भर्डार भर जाता र । में भी उनमें एक होनेका सौभाग्य प्राप्त कर सकूँ , यही । पं० नेहरूजीने हँसते हुए कद्दा--शिक्ता पूर्ण करो, कतेव्य करो, देश सेवाके लिये कास करो, सफलता अवश्य मिलेगी । লন হাছন सभी बातंके लिए हमें श्रापका आशीर्वाद आवश्यक- हैं| प॑० नेहरूजीने कहा--क्या यह विना आशीर्वादके नहीं होगा ? मनि कहा--जी नहीं, मेरा विश्वास हे कि जीवनमें सफलताकी सब्धनाके लिये आपके शुभाशीवांद विना वह नवस्फूर्ति और वह नवजीवन जागृति नहीं आ सकती जो इसके लिये अपेक्तित है, अत्यावश्यक है । प० नेहरू जीने कद्द--अच्छा १ तो जाओ, सफलता अवश्य मिलेगी । मेरे द्वारा दिये गये वर्णीजीके परिचयमें ''मौनदेशभक्त वर्णीजी” शापंकर्मे चर्थोजीकी राष्ट्र कक्याणकी भावनासे वे बहुत प्रसक्ष हुपु | यह जानकर तो, वे ओर भी प्रसन्न हुए कि वर्णीर्जःने मानवमास्रके सएटमकल्याण के लिये सपना स्पष्ट ्रभिमत देकर जेन धर्मके पवित्र उदार सिद्धान्तोकी सुरक्षा की है, और विश्ववन्ध वापूके रचनास्मरु कायं--घ्धूतोद्धएरमे राष्ट्रीय सरकारकी सहायता कर सनन्‍्तोंकों सम्ुज्वल पथ प्रदर्शन किया है । सचमुच अआजकी सामाजिक घ॒ दूसरी समस्याएँ ऐसी उलकी हुई हैं कि उनके सुल्मानेके लिये चवर्णीजी जैसे महामना सन्त ही समर्थ हो सकते हैं । साधारण व्यक्तियोंकी वात सुननेका समय आजकी समाजके पास नहीं है और न वह इसके लिये सजय ही है । कभी सजग होता भी है तो सही विचार व्यक्त फरनेवालोको दवाकर रखनेके लिये ही | प्‌कबार मैंने एक ऐसी दी घटना वर्णाजीको सुनाई तब उन्होंने उन्तर विया--'मैया | यथह तो ससार है, इसमें और क्या मिक्केगा ? सारे समाजमें कुछ ही व्यक्ति ऐसे होते हैं. उनकी श्रवृत्तियॉंकी देखकर ही:




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