बलिदान | Balidaan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : बलिदान  - Balidaan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma

Add Infomation AboutRamchandra Verma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ह्य | पहला अक । ११ पर जा बैठना पड़ेगा, तो क्या इसी डरसे आज हम लड़कीको पानीमें पीक दे तुमसे जो कुछ हो सके सो करो । . करु०--और तव फिर वाकी दोनों छड्किर्योका कया होगा ? मसरी लडकीका न्याह भी इसीके साथ हो जाय तो अच्छी बात हे । दोनमिं হী ही बरसकी तो छोटाई बढ़ाई है। हाँ, यह है कि उसकी उठान ऐसी नहीं है, इस लिये जो चाहो सो कह लो । ^ सर०--उन दोनों लड़कियोंके भाग्यमें जो कुछ बदा होगा सो होगा । हिरणका व्याह अमी दो बरस तक न भी हो तो भी कोई हर्ज नहीं है । कलके लिये घरमें अन्न नहों तो क्‍या इस लिये आजका परोसा हुआ भोजन भी मिट्टी, कर दिया जाय १ बाबूजी कहा करते थे कि यदि अच्छे पात्रको कन्यादान की जाय तो एक ही लड़कीसे सात लड़कोंका काम निकलता है । और फिर यह भी तो नहीं हे कि ऐसे ही दिन सदा बने रहेंगे । इनसे अच्छे दिन मी आ सकते हैं ओर बुरे दिन भी आ सकते हैं। तुम तो मर्द हो, इस तरह जी छोटा क्‍यों करते हो ! 'करु०--मैं भी पहले इसी तरहकी बातें सोचा करता था; में भी लोगोंको इसी तरहके उपदेश दिया करता था | ओर इससे अच्छे दिन क्या पत्थर होंगे। इन दस बरसॉमें अभी तक डेढ़सो रुपए महीना भी तनखाह नहीं हुई | तुम नहीं जानती, यह संसार बड़ा कठिन है--- इसे बन्धु-बान्धवहीन जंगल हीं समझो। यदि पहलेसे ही समझ-बूझ कर कोई काम न किया जायगा तो पीछेसे अवश्य पछताना पड़ेगा । सर०--अजी यह कौन जानता है कि कलको क्‍या होगा ! सुख-दुःख तो इस संसारमें लगा ही रहता है । चाहे अच्छा हो चाहे बुरा, धम्मंके अनुसार सब काम करना चाहिए । अपनी सन्ता-- नके शत्रु न बनो । यदि घर भी चला जाय तो तुप्त कुछ सोच मतः




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now