पलटू साहिब की बानी | Paltoo Sahib Ki Bani bhag Iii

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Paltoo Sahib Ki Bani  bhag Iii by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पलयू साहिब की ऐसी कुद्रति तेरी साहिब, ऐसी कद्रति तेरी है ॥टेक॥ धघरतो नभ दुइ भोत उठाया, तिस में घर इक साया है क्तस घर भातर लगाया, लोग तमायसे जाया जि तोन लेक फलवारी तेरी, फूलि रही बिन माली है। घट घट बढ़ा आपे सांचे, तिल अर कहीं न खाली है ॥२॥ चारि खान आओ चतुरद्स, लख चेरासी बासा है। . आलम ताहि ताहि में आलम, ऐसा अजब तमासा है ॥३॥ . नठवा हाइ के बाजी लाथा, आपड देखसहारा है । पलटूदास कहीँ मं का से, ऐसा यार हमारा है ॥ 9 ॥ ॥ सचे-न्यापक ॥ श्‌० जगन्नाथ जगदीस, जग मेँ ब्यापि रहा ॥ टेक ॥ चारि खानि में लख चारासी, और न कोह्े ढूजां । आपड ठाकुर आपुद् सेवक्र, करत आपनी पूजा ॥ ९॥ आपड्द दाता मैँँगता, आपुद्द जागी भागी । आापड बिस्वा* आपुंड बिसनो' आपु बेदू.अप रोगी #२॥ ब्रह्मा विस्नु सहेख सुर नर सुने हाइ आया । जाप ब्रह्म निरुपम गावे, आप मंरत माथा 0 दे॥ आपड कारन आप कारज, बिस्वरूप' द्रसाया । पलटूदास दृष्टि तब आने, संत करे जब दाया मे ४ .॥ सी (१) कसबी । (२) सागी ! (३) संसार |




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