तत्त्वार्थ सूत्र | Tattvarth Sutra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
39 MB
कुल पष्ठ :
515
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १६ ]
से आर्थिक पुण्य पाप और सामाजिक उद्चता तथा नीचता का
समर्थन नहीं होता यह बात किसी भी कर्मशाख के अभ्यासी से
छिपी हुई नहीं है। उसने इनका महत्त्व मात्र आध्यात्मिक दृष्टि से
माना है, तभी तो बह उद्यगोत्र ओर नीचगोन्र इनका समाबेश
जीवविपाकी कमों में करता है। मेरा तो स्पष्ट ख्याल है. कि भाष्य
की रचना जितनी पुरानी सोची जाती है उतनी पुरानी नहीं है' ।
बह ऐसे समय में' ही रचा गया है. जब कि भारतवप में जातीयता
आकाश को छूने लगी थी और जैनाचाय भी अपने आध्यात्मिक
दर्शन के महत्त्व को भूलकर बआाह्मण विद्वानों के पिछलग्गू बनने
लगे थे ।
एक बात ओर है'। दूसरे अध्याय में २१ ओदयिक भाव का
निर्देश करते हुए 'लिज्ड” शब्द आया है। वहाँ इसका तीन बेद”
अथ लिया गया है । इसके बाद यह लिङ्ग शब्द दो जगह पुनः
आया है--एक तो नोवे अध्याय के संयम प्र तसेवना! इत्यादि सूत्र
में और दूसरे दसवें अध्याय के अन्तिम सूत्र में। मेरा ख्याल है
कि सूत्र मे एक स्थल पर पारिभाषिक जिस शब्द का जो अर्थ परि-
गृहीत है वही अथ अन्यत्र मी लिया जाना चाहिये। .किन्तु हम
देखते हैं कि तत्त्वाथाघिगस भ्राष्यकार इस तथ्य को निभाने में
असमर्थ रहे । ऐसी एक दो त्रुटियाँ तद्यपि सर्वाथसिद्धि में भी देखने
को मिलती हैं ओर इन टीकाओं के आधार से आज तक इन
त्रुटियों की पुनरावृत्ति होती आई है। हम भी उनसे बाहर नहीं हैं ।
पर तत्त्वार्थाधिगम भाष्य के कर्ता को सूत्रकार मान लेने पर उनकी
यह जबाबदारी विशेषरूप से बढ़ जाती है'। किन्तु वे इस जबाबदारी
को निभाने में असमथ रहे क्योंकि उन्होंने दूसरे अध्याय में “লিজা
शब्द की जो परिभाषा दी है, जो कि मूल सूत्र से भी फल्वित होती
है उसका वे स्वेन्न निर्वाह नहीं कर सके. और नोंबें अध्याय के
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