जीवन की पोथी | Jeevan Ki Pothi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्या ईश्वर हैं ? ७. पर बह कंजूस था। उसके पुत्र की शिकायत रहती थी कि पित्ताजी ने पहनने को अच्छा कपड़ा ही देते हैं और न खाने के लिए पूरा भोजन ही 1 प्ृत्रवधू की भी यही शिकायत थी । लोग मजाक छड़ाते । अर्थवसु सब कुछ सहता । पर तर्च उतना ही करता जितना चहु उचित समता पा) एक वार লাল चिष्नविदयासय क्ती योजका उसके सामने सद्‌! तर्थधवसु ने अपनी पारी संपत्ति नातंदा संप-विहार कैक्तिए समरपितिकरदी। करोड़ों की संपत्ति ! यह बात बुद्ध तके पहुची। बुद्ध को आश्चये हुआ ! अर्थवसु को पुछा --एक प्रैसा देना तुम्हारे लिए कठिन था और तुमने लपनी करोड़ों की संपत्ति दान में दे दी । यह परिवर्तन कैसे आया ? अर्भवसु बोला--- भगवत्‌ ! मैं सर्वोत्तम क्षण की प्रतीक्षा में था। सर्वोत्तम कार्य की तलाश में था । अन्यान्य कार्य झुर्े वहुत छोटे लग रहे थे । यह कार्य मुझे सर्वोत्तम लगा और मैंने अपनी सारी संपत्ति दान मैं दे दी । साधकों के समक्ष भी अध्यात्म का सर्वोत्तम क्षण उपस्थित हुआ है । उनके पास अपार संपत्ति है। वे संपदा का नियोजन करें, जिससे कि अनेक दुर्लभ शक्तियां जायूत हों और उन्हें आदर्श को प्राध्ति सहज हो जाए। उनमें स्वयं ईश्वर का अनुभव जागे, फिर उन्हें पूछना न पड़े कि वया ईएवर है २




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