महाभारत - कथा | Maha Bharat Katha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ महाभा रत-कथा मये । काल-चक्र तेजी से घूमता गया; और प्रेम-सुधा-मग्न राजा और गंगा को उसकी खबरतक न थी। समय पाकर गगासे शान्तनु के कई तेजस्वी पुत्र हुए; परगंगाने उनको जीने न दिया। बच्चे के पैदा होते ही वह उसे नदी की, बढ़ती हुई घारा मे फेक देती और फिर हसती-मुस्कराती राजा शान्तनु के पास भा जाती । अज्ञात सुन्दरी के इस व्यवहार से राजा शान्तनु चकित रहं जाते । उनके आश्चयं ओर क्षोभ का पारावार न रहता । सौचते, यह स्मितवदन ओर मृदल गात भौर यह पैलाचिक व्यवहार ! यह्‌ तरुणी कौन है? कहा की है ? इस तरह के कई विचार उनके मन में उठते, पर वचन दे चुके थे, इस कारण मन मसोस कर रह जाते। सूर्य के समान तेजस्वी सात बच्चों को गगा ने इसी भाति नदी की धारा में बहा दिया | आठवा बच्चा पैदा हुआ। गगा उसे भी लेकर नदी की तरफ जाने छगी तो शान्तनु से न रहा गया। बोले--“ठहरो, बताओ कि यह घोर पाप करने पर क्यो तुली हो ? मा होकर अपने नादान बच्चों को अकारण ही क्यो मार दिया करती हो ? यह घृणित व्यवहार तुम्हें शोभा नही देता ।॥” राजा की बात सुनकर गगा मन-ही-मन मुस्कराई, पर क्रोध का अभिनय करती हुई बोली-- “राजन्‌ । क्या आप अपना वचन भूल गये ? मालम होता है अब आपको पुत्र ही से मतलब है मुझसे नही । आपको मेरी क्या परवाह है! ठीक है । शर्ते के अनुसार अब में जाती हू। हा, आपके इस पुत्र को में नदी में नहों फेकुगी ।/ इसके बाद गगा ने अपना परिचय दिया और बोली--“राजन्‌ ! घबराओ मत) मे वह्‌ गगा हूं जिसका यर ऋषि-मुनि गाते हे। जिन बच्चों को म॑ने नदी की धारा में बहा दिया वे सात वसु थे। मह॒षि वसिष्ठ ने आठो चवसुओ को मत्यंलोक में जन्म लेने का जाप दिया था। बसुओ ने मुझसे




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