संगीत - शास्त्र | Sangeet Shastr

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : संगीत - शास्त्र  - Sangeet Shastr

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about के. वासुदेव शास्त्री - K. Vasudev Shastri

Add Infomation About. K. Vasudev Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पहला परिच्छेद शास्त्रावतरण संगोत का दाद्दार्थ सम” (सम्यक्‌) और “गीत दोनो शब्दों के मिलन से सगीत शब्द वनता है । मौखिक गाना ही “'गीत' है। “सम” (सम्यक्‌) का अयं॑ है अच्छा । वाद्य और नृत्य दोनो के मिलने से ही गीत अच्छा चन जाता है-- 'गीत वाद्य च नृत्य च श्रथ सगीनमुच्यते ।' हम आज सावारणतया केवल 'गीत' या 'गीत' और “वाद्य को ही सगीत कहते हैं। इसलिए प्रधानत गीत भौर वाद्य पर ही इस पुस्तक में 'सगीत-थास्त्र' थीर्पक के अन्तर्गत विचार किया जा रहा है । संगोत की प्रशासा मगीत आनन्द का आविर्भाव है। आनन्द ईश्वर का स्वरूप है। सगीत के द्वारा हो दु ख के लेश तक से भी सम्बन्ध न रखनेवाला सुख मिलता है। दूसरे विपयों से होनेवाले सुखो के आगे या पीछे दु ख की सम्भावना हैं परन्तु इस दु खपूर्ण समार से सगीत एक स्वर्गावास है । सगीत के ईय्वर स्वरूप होने के कारण जो लोग संगीत का अम्यास करते हैं वें तप, दान, यज्ञ, कर्म, योग आदि के कप्ट न झेलते हुए मोक्षमाग तक पहुँचते हूं। योग और जान के सर्वश्रेप्ठ आचार्य श्री यान्वल्क्य कहते है-- “'वोणावादनतत्त्वन- .. श्लुतिजातिविशारद 1 तालज्ञइचाप्रयानेन मोक्षमार्ग प्रयच्छति 11” -याज्वत्वयस्मृति । सगीत्त योग की विशेषता यह है कि इनमें साब्य और सावन दोनों हो सुखरूप हूँ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now