संगीत - शास्त्र | Sangeet Shastr
श्रेणी : संगीत / Music
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.8 MB
कुल पष्ठ :
406
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला परिच्छेद
शास्त्रावतरण
संगोत का दाद्दार्थ
सम” (सम्यक्) और “गीत दोनो शब्दों के मिलन से सगीत शब्द वनता है ।
मौखिक गाना ही “'गीत' है। “सम” (सम्यक्) का अयं॑ है अच्छा । वाद्य और नृत्य
दोनो के मिलने से ही गीत अच्छा चन जाता है--
'गीत वाद्य च नृत्य च श्रथ सगीनमुच्यते ।'
हम आज सावारणतया केवल 'गीत' या 'गीत' और “वाद्य को ही सगीत कहते
हैं। इसलिए प्रधानत गीत भौर वाद्य पर ही इस पुस्तक में 'सगीत-थास्त्र' थीर्पक
के अन्तर्गत विचार किया जा रहा है ।
संगोत की प्रशासा
मगीत आनन्द का आविर्भाव है। आनन्द ईश्वर का स्वरूप है। सगीत के
द्वारा हो दु ख के लेश तक से भी सम्बन्ध न रखनेवाला सुख मिलता है। दूसरे विपयों
से होनेवाले सुखो के आगे या पीछे दु ख की सम्भावना हैं परन्तु इस दु खपूर्ण समार
से सगीत एक स्वर्गावास है । सगीत के ईय्वर स्वरूप होने के कारण जो लोग संगीत
का अम्यास करते हैं वें तप, दान, यज्ञ, कर्म, योग आदि के कप्ट न झेलते हुए मोक्षमाग
तक पहुँचते हूं। योग और जान के सर्वश्रेप्ठ आचार्य श्री यान्वल्क्य कहते है--
“'वोणावादनतत्त्वन- .. श्लुतिजातिविशारद 1
तालज्ञइचाप्रयानेन मोक्षमार्ग प्रयच्छति 11”
-याज्वत्वयस्मृति ।
सगीत्त योग की विशेषता यह है कि इनमें साब्य और सावन दोनों हो
सुखरूप हूँ।
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