सर्वोदय के बुनियादी सिद्धांत | Sarvodya Ke Buniyadi Sidhant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
466
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १७)
(06-फताशतेएश्ीउक्षाणा ) यत्र का सवसे भयंकर अभिशाप
हूँ। इसका निराकरण होना हो चाहिए ।
১৫ >< ><
पूँजीवादी इत्मादन का एकमात्र लद्य पेक्षा होता दै । यद्
उत्पादन मुनाफे के छिए, विनिमय के लिए ही होता है। मैंने जो
रकम लगायी, वह कुछ मुद्राफे के साथ मुझे! बापस मिल ज्ञाब,
यही उसका उद्देश्य है। यह है मुनाफे के छिए त्पादन-?106-
पर०ध00 107 170 | वाजार की पकौड़ियाँ मले ही खाने लायक
न हो, पर यदि उनका पैसा वसूल हो जाय, तो उनका उत्पादन
सफल माना जाता है !
छात्रावास मे जितने लड़के रहते हैं, उतने लड़को के हिसाब
से ही रोटियाँ चनायी जाती है, यह 200८५00 0 008४
ए४०, उपयोग के लिए उत्पादन है, पर इसमें इस वात के लिए
गुजाइश नहीं कि किसोके दाँत यदि गिर यये हैं, तो क्ष्या हो ९
यान्त्रिक उत्पादन में तीन प्रणा शी
জ্যাদাহন্োভু ((0001160181197) )
साश्नाञ्यवाद् ( 71706101157 ) और
उपनिवेशचाद ( (गण्श ) |
पर भाज फी जागतिक स्थितिपेसीदै किये तीनो प्रेरणे
समाप्ति पर हैं। आज़ वाजारो का अथशा्न समाप्त हो रहा है,
साम्रा ज्यवाद मिट रहा है और उपनिवेशवाद अन्तिम सॉस ले
रहा है |
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साज 10९5 ( गति का तत्त्व ) वाजार से उठकर
वेचारिक क्षेत्र में आ गया है। विश्व मे आज दो मोर्चे हैं--
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