सिद्धान्तसारादि संग्रह | Shidhuantsaradhi Sangra

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Shidhuantsaradhi Sangra  by पन्नालाल सोनी -Pannalal Soni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ किसी समय यह पद छोढा है। परन्तु यह निश्चय है कि मध्ररक पद छोक्नेके बाद भी वे बहुत समयतक जीवित रहे हे । भष्टाक शुभ चन्द्र भी बहुत बड़े विद्वान्‌ हुए है । त्रिविधविदाधर (शब्दागम, युक्त्यागम भौर परभागमके ज्ञाता ) ओर षदभाषाकवि चक्रवर्ती ये उनकी पदवियों थी । मास्करमे प्रकादित पष्टवलीमें छिखा है कि वे “शमाणपरीक्षा, पत्रपरीक्षा, 'परष्पपरीक्षा (! ), परीक्षामुख, प्रमाणनिर्णय, न्यायमकरंद, न्यायङुसुदचन्दरोदय,न्या- यविनिरचय, छोकवार्तिक, राजवार्तिक, प्रमेयकमलमार्तण्ड, आप्तमीसांसा, अष्टस- इसी, चिन्तामणिमीमांसाबिवरण, वाचस्पतितत्वकौुदी भादि कर्कश तर्कभन्थोंके, जैनेन्द, शाकटायन, दन्द, प्राणिनि, कराप आदि व्याकरणप्रन्योके, त्रलोक्य- सार, गोम्मटसार, लब्पिसार, क्षपणासार, त्रिलोकप्रन्नप्ति, सुविज्ञप्ति (१ ), अध्या- त्माश्सदस्ती (१ ) और छन्दोलकार आदि शाज्जसमुद्रोंके पारगामी थे। उन्होंने अने$ देशों विहार किया था, अनेक विदयार्थरथोक्षा वे पारन करते थे, उनकी सभामें अनेक विद्वलन रहते थे, गोड, कलिंग, कर्णाठ, तौलव, पूर्व, गुजर, मारव, भादि देशोंके वादियोंकों उन्होंने पराजित किया था और अपने तथा জন্য धर्मोके वे बड़े भारी ज्ञाता थे भ० शुभचन्दजीके बनाये हुए अनेक ग्रन्थ हैं और प्रायः उन सभीकी अन्तः अशस्तियोमें उन्होंने अपनी गुरुपरम्पराका परिचय दिया ই। स्वामिकार्तिकेया- ुपरक्षारीकाकी प्रशस्ति इम श्सी लेखमें पहले उद्धुत कर चुके हैं। पाण्डवपुरा- 'णकी प्रशस्ति भी हमारे पास है। परन्तु यहों हम उसके उतने ही अंशको प्रका- .श्चित करते द जिसमे उनकी तमाम भन्थरचना्ओंका उदे दैः- चन्द्रनाथचरितं चरितार्थं पश्मनामचारितं शुभचन्द्रं । मन्मथस्य महिमानमतन्द्रो जीवकस्य चरितं च चकार ॥ ७२ चन्दनायाः कथा येन दग्धा नान्दीश्वरी तथा | आश्ताघररूताचायो( चयाः वचिः सट्ठत्तिशालिनी ॥ ७३ निंशश्वतुर्विशतिपूजनं च सद्गत्तसिद्धाचेनमव्यघत्त । सारस्वतीयारच॑नमन्न शुद्ध चिन्तामणीयाचेनमुश्जरिष्णुः ॥ ७४ श्रीकमेदाहविधिबन्धुरसिद्धसेवां नानागुणोघगणना थसमश्चेनं च । श्रीपाश्वेनाथवरकाव्यसुपल्निकां च यः संचकार शुभचन्द्रयतीन्द्र - चन्द्र; ॥ ७५




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