हमारे साहित्य निर्म्माता | Hamare Sahitya Nirmata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अयोध्यासिंद उपाध्याय दरिश्लौध! * १९१ नामकरण फी द्योटी-सी व्रात में ही जहाँ आपके साहित्यिक पारिडित्य की सूचना मिलती है, वहाँ चिरपरिचित वस्तुओं में नवीनता की उद्भावना कर देने की क्षमता का भी परिचय मिलता है। यही क्षमता और यही दृष्टिकोश हम उनकी सम्पूर्ण कृतियों में पाते हैं । ? उपाध्यायजी ने गद्य और पद्म दोनो' ही लिखे हँ। गद्य में आपने प्रायः उपन्यास और कुछ साहित्यिक निवन्ध लिखे हैँ । “छेद हिन्दी का ठाट” ( सं० १६५६ ), “अथखिला फूल” ( सं० १६६४ ), और अनूदित “वेनिस का बॉका”, आपके उपन्यास हैं । “हेद हिन्दी का ठाट” ओर “थ्धप्िला फूल” उपदेशात्मक एवं जनसाधारणोपयोगी, रोचक, सरल उपन्यास हैं। ये हिंदी की उसे समय की हृतियाँ हूँ, जब हमारे साहित्य म॑ उपन्यास-तत्व का प्रवेश भी नहीं हो मफा था। भाषा की दृष्टि से हिन्दी का कथा- साहित्य सर्वेसाधारण के लिये कितना मुलभ बनाया जा सकता है, उपाध्यायज्ञी के दोनों उपन्यास 'ठाद' और शूल इमी बात के थ्ोंतक हैं। किन्तु, “वेनिस का बाँका” उतना सरल उपन्यास नहीं, उसकी भाषा क्रिप्ट एवं मं्छत-गर्भित दै । इन उपभ्यामों को देखने से हयी विदित ह्यो जाता दै सि उपाध्यायजी अति सरल ओर अति कठिन दोनों ही तरह की भाषा लिखने में फितने निष्णात हैं । ओर, यही वात उनके पद्य-साहित्य के विपय में भी कही जाती है। उनके “बोखे चौपदे', “चुभते चौपदे' और 'वोलचाल' खया न्य জে सरल मुक्तक कविताओं में, भाषा बहुत सीधी-




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