मेरी प्रिय कहानियाँ | Mari Priy Kahaniya

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Mari Priy Kahaniya by यशपाल - Yashpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहाड़ की स्मृति १७ आऊगा भभी त्तक नहीं आया ? जाने कव आएगा ? लड़की भी इतनी बड़ी लि री मैंने पुछा-- तो तुम उसके साथ लाहौर क्यों नहीं चली मई डर उसने गाल पर हाय रखने हुए कहा-- हा मैं नही गई । परसराम ने तो कहा था है चल । पर मैं नहीं गई । देखो मैं कंसे जाती ? यहा का सब बसे छोड़ जाती वह सामने सुरवानियों के पेड़ हैं वे नाशपातिया हैं सेव हैं दो बसरोट हैं। मैं यहा से कभी कटी नहीं गई । एक ददों जब मैं छोटी थी मेरी मौनी मुझे अपने गाव वहा नीचे ले गई थी । उसका धर हो गई। मैं कमी कही नहीं गई । लाहौर तो बहुत हैर है वहा शायद लोग बीमार हो जाते हैं। परसराम के लिए मुझे बहुत डर लगता है । क्या जाने पया हाल हो ? हमारे यहा बीमार कभी ही कोई होता है। होभी जाए तो साइ-फूंक देता है। लाहौर में क्या कोई काइने- क्यों सन्तोप थे सिर हिंलाकर उसने कहा-- अच्छा । मकुचाते-सकुचाते मैंने प्रेष्टा-- परसराम के आने से पहले तुम्हारा उसने कहा ब्याह तो हुआ था बहुत पहले । मुझे ब्याहकर यहां से मेरा आदमी तकू ले गया था। चहा मुझे अच्छा नहीं लगा । में बीमार हो वहां मेरी सौ मुझे मारती थी 1 मैं यही लौट आईं। मेरा आदमी पी ता




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