सप्तव्यसनचरित्र | Saptavyasanacharitra

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Saptavyasanacharitra by उदयलाल काशलीवाल - Udaylal Kashliwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) उन छोगोंमेंस किसीने कहा-पहले दूत भेजकर उससे कन्या छोटानेके लिये कहरूवाना चाहिये और यदि वह स्त्रीकार न करे, तो फिर युद्ध तो बना बनाया है ही । विचारके अनुसार दुत भेजा गया ! दूतने जाकर अञ्यैनसे कहा--तुम्हें चाहिये कि राजकुमारीको राजा लोगोंके लिये देकर तुम सुखपू्षक रहो । राजकुमारीने बड़ी भारी मूखता की, जो राजा लोगोंको छोड़कर तुम्हें अपना स्वामी वनाया । तुम बुद्धिमान हो, हृदयमें विचार कर कुमारीको राजाओंके लिये दे दो ओर अच्छी तरह जीवन- यात्रा करो । उत्तरमें अजुनने दूतसे कहा-तुम जाओ और अपने स्वामीसे जाकर कह दो-कि सीधी तौरसे तो हम राजकुमारीको नहीं देंगे, हां, यदि कोई युद्ध भूमिमें बहादुरीसे ले सके, तो ले लेवे। क्या तुमने कभी किसीको अपनी वह्लभा यों ही' देते हुये देखा-अंथवा सुना है। तुम्हारे स्वामियोंमें ऐसी दुबुद्धि क्यों उत्पन्न हुई? यदि उन्हें ठेनेकी इच्छा ह, तो रणमें आवें । कोधे आकर अनने दूतको उसी वक्त निकर्वा दिया । दूतने जाकर यद सव हार राजा रोगोको खना दिया । सुनते ही बे बड़े बिगड़े। और युद्धके लिये तयार हो गये । अजुनने देखा कि, वीर छोग युद्धभूमिमें इकडे हो रहे हैं। इससे उसे बड़ा ही क्रोध आया । वह उसी वक्त श्व- जुरके साथ २ युद्धके लिये निकल पड़ा । दोनों ओरके यो- द्धाओंकी मुठभेड़ हो गई। घोर युद्ध होना आरंभ हुआ। अ्जुनने राजाओंको भयसे ज्याकुछ कर दिये । दुष््लोघन




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