सप्तव्यसनचरित्र | Saptavyasanacharitra
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
232
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३ )
उन छोगोंमेंस किसीने कहा-पहले दूत भेजकर उससे
कन्या छोटानेके लिये कहरूवाना चाहिये और यदि वह
स्त्रीकार न करे, तो फिर युद्ध तो बना बनाया है ही ।
विचारके अनुसार दुत भेजा गया ! दूतने जाकर अञ्यैनसे
कहा--तुम्हें चाहिये कि राजकुमारीको राजा लोगोंके
लिये देकर तुम सुखपू्षक रहो । राजकुमारीने बड़ी भारी
मूखता की, जो राजा लोगोंको छोड़कर तुम्हें अपना
स्वामी वनाया । तुम बुद्धिमान हो, हृदयमें विचार कर
कुमारीको राजाओंके लिये दे दो ओर अच्छी तरह जीवन-
यात्रा करो । उत्तरमें अजुनने दूतसे कहा-तुम जाओ
और अपने स्वामीसे जाकर कह दो-कि सीधी तौरसे तो
हम राजकुमारीको नहीं देंगे, हां, यदि कोई युद्ध भूमिमें
बहादुरीसे ले सके, तो ले लेवे। क्या तुमने कभी किसीको
अपनी वह्लभा यों ही' देते हुये देखा-अंथवा सुना है।
तुम्हारे स्वामियोंमें ऐसी दुबुद्धि क्यों उत्पन्न हुई? यदि उन्हें
ठेनेकी इच्छा ह, तो रणमें आवें । कोधे आकर अनने
दूतको उसी वक्त निकर्वा दिया । दूतने जाकर यद सव
हार राजा रोगोको खना दिया । सुनते ही बे बड़े बिगड़े।
और युद्धके लिये तयार हो गये ।
अजुनने देखा कि, वीर छोग युद्धभूमिमें इकडे हो रहे
हैं। इससे उसे बड़ा ही क्रोध आया । वह उसी वक्त श्व-
जुरके साथ २ युद्धके लिये निकल पड़ा । दोनों ओरके यो-
द्धाओंकी मुठभेड़ हो गई। घोर युद्ध होना आरंभ हुआ।
अ्जुनने राजाओंको भयसे ज्याकुछ कर दिये । दुष््लोघन
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