अक्षरविज्ञान | Akshar Vigyan

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Akshar Vigyan by रघुनन्दन शर्मा - Raghunandan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहिला मकरण ९. झान्दके साथ अर्थका रिचार करनेपर सहसा यह प्रश्न उप्थित इसे विकाशवाद. होजाताईँ, कि क्या शन्दके साथ अर्थका कोई स्वाभाविक कया हासवादों सम्धन्ध है ? क्या आदि सृष्टिमे पैदा टूर मलुष्य वोठते थे 5 यदि बोछते थे तो दाव्द अर्थका संभोग बुदरती रीतिये उनको मिला था या बंया १ यदि अधज्ञानदा सम्बन्ध उनको पैदा होते ही मिठा था तो किसकी ओरसे मिठा था ? क्या कोई अन्तारिक्षमे. ज्ञानरूपा चतनशक्ति भी है १ !! बस यहींतक प्रश्नोकी गति है । यहीं तक प्रश्नश्नहुला चलती है । इस भावको सामने रखकर प्राचीन काऊके फ्रषियों ने जो उत्तर दिया है उसे हम यहाँ नहीं ठिखना चाहते किंन्तु योरपके पिद्दा- नोंने जो इसपर ब्रिचार किया है, जिसके अनुसार उनके शात््र बने हैं, और जिन दाख्योंको पढकर ठोग बिकाशयादी हुए हैं, उन विचारोंको, उस शहुढाको, थोडेमें, सारांशरूपते, हम यहीं दो पैराप्राफो्मे, बर्णन करना न्ाहतेहैं । ( कू ) आजतकके योरूपीय विज्ञानका निचोड यह है कि“'ग्रकृति (मैटर) का सू६मातिसूकष्म रूप ईधर (आकाश) है, उसमें दो गुण है । पहिला-उसके परमणुओंमें गतिका होना, दूसरा-उसकी गर्मीका ऋमकम कम होना । परमा- शुओके कम्पन और तद्धावढीसे, शब्द, प्रकाश, गमी और घिदयुत आदि होते हैं और उसके ही कमक्रम ठढा होनेसे वायी य त्तररु और कठोर पदार्थ बनते




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