मितव्यय | Mitvyay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
242
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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किसी देश को वास्तव में संपन्न और धनवान् वनानेवाले
वे ही लोग मुख्य हैं जे खेती-बारी करते और कच्चा माल
उपजाते हैं। इसारे भारत के नि्रासियों मे प्रति सौ में <५
ग्रादमी ऐसे हैं जो खेती-बारी करते श्रौर कच्चा माल तैयार
करते हैं। पर उन लोगों की आराधिक दशा इतनी हीन और
शोचनीय है कि उसका ठीक-ठीक वर्णन करना बिलकुल अस-
মল द्वी है। जिस देश फे करोड़ों आदमियों को, सुख-सामग्री
की कोन कहे, कभी दिन-रात में एक बार भो भर पेट भोजन
त मि्षता हो और जिस देश में दस वर्ष के अदर दो करोड़
आदमी अ्रकाल के कारण লহ বাহ হা” শু देश की दुग्बस्था
का वास्तविक चित्र कौन खींच सकता है। हमारे देश की
जनसख्या अकाल और प्लेग आ्रादि के रहते हुए भो, कुछ न
कुछ घढती दी जाती है। चीजो की महँगी श्रौर खर्च की बढ़ती
दिन पर दिन अधिक अपरिसित श्रौर मर्य्यादा-रहित द्वोती
जाती है और आय, बड़-बड़े विद्वाने के कथनानुसार, घटती
जाती है। ऐसी दशा में उन लोगो का, जिन्हे आठ पहर में
एक बार भी भर पेट अन्न न मिलता हो, मितव्यय का
उपदेश देना बहुत ही ह्वास्यास्पद है। ह्ास्यास्पद ही नहीं,
इसकी गणना বো मे की जानी चाहिए। हमारी इस
दुरदेशा और हीनता के कारण और उपाय विलकुल ही भिन्न
सन् १5६१ से १६०० तक सारे भारत के भिन्न भिन्न प्रातं में
२९ श्रकाल पड़े थे जिनके कारण १६०००००० मनुष्य मरे थे |
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