जायसी : व्यक्तित्व और कृतित्व | Jayasi Vyaktitva Aur Krittatva
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
229
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma
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रामलाल वर्म्मा - Ram Lal Varmma
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मलिक मुहम्मद जायसी जीवन, व्यक्तित्व तथा कृतित्व / १९
गुरु तथा शिक्षा-दीक्षा |
जायसी ने अपनी रचनाओं मे अपनी गुर-परम्पराओ का उल्लेख किया है 1
पद्मावत (स्तुति खण्ड) मे उनका कहना है--
सैयद अशरफ पीर पियारा 1 जहि मोहि दीन्ह पंथ उजियारा।
लेसा हिएँ पेम कर दिया। उठी जोति भा निरमल हिया ।
मारग हुत अंधियार असूका । भा अभ्रजोर सब जान बुभा।
खार समुद्र पाप मोर मेला | बोहित धरम लीन्ह कई चेला।
उन्ह मोर करिअ पोढकर गहा। पाएस तीर-घाट जो अहा।
जहागीर ओइ चिस्ती निहकलक जस चाद |
ओई मखदूम जगत् के हौ उनके घर बाद ॥
अर्थात् सैयद अशरफ, जो एकं ॒भ्रिय सन्त थे, मेरे लिए उज्ज्वल पथ के प्रदर्शेक
बने और उन्होने प्रेम का दीपक जलाकर मेरा हृदय निर्मेल कर दिया। उनका चेला
बन जाते पर मै अपने पाप के खारे समुद्री जल को उन्ही की नाव द्वारा पार कर
गया और मुझे उनकी सहायता से घाट मिल गया। वे जहागीर चिश्ती चाद जैसे
निष्कलक थे, ससार के मालिक थे और मैं उनके घर का सेवक हूं ।
इस सैयद अशरफ की वश-परम्परा का परिचय देते हुए कवि लिखता है---
उन्ह घर रतन एक निरमरा । हाजी सेख सभागई भरा।
तिन्ह घर दुह दीपक उजियारे। पंथ दैेइ कहु दइअ संवारे।
* सेख मुबारक पुनिउ करा। सेख कमाल जगत् निरमरा।
अर्थात् सैयद अशरफ जहागीर चिती के व्च मे निमेल रत्न जंसे शेल हाजी हुए तथा
उनके अनन्तर रेख मुबारक और शेख कमाल हुए ।
इसी प्रकार से ही जायसी ने जाखिरी कलाम मे संयद अशरफ की गुररूप
मे स्तुति की है ओर अपने को उनके घर का सेवक बतलाया है--
जहागीर चिस्ती निरमरा। कुल जग मा दीपक विधि धरा।
ओौ निहग दरिया जल महा । নু कहं धरि काढत बाहा ।
समुद माफ जो बोहित फिरई। लेते नाव सहूं होइ तरई।
तिन घर हौ मुरीदसो पीरू। संवरत गुन लावे वीरू।
'अखरावटः मे भी जायसी ने सैयद जहामीर अशरफ से दीक्ना ग्रहण कर अपने
उद्धार का वर्णन किया है---
कही सरीयत चिसती पीरू। उधरित असरफ ओ जहांगीरू।
तेहि के नाव चढा हो धाईं। देखि समुद जल जिउ न डेराई।
जायसी ने अपनी रचनाओ में मोहदी या मह॒दी गुरु शेख बुरहान का भी गुर
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