रीतिकालीन साहित्य के वैविध्य मे दंपति वाक्य विलास | Reetikalin Sahitya Ke Vaividhya Me Dampati Vakya Vilas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५१६ राजन के राजाधिपनि; पृवीमि्‌ युभूष ) रजघानी श्रीक्ृष्णगढ, राजत दुर्ग अनूप 1 गो डिज पाछक बृत दृढ़, वाछक अरिदल गाल । दितकर दितकर-वश के, पृथ्वों सिह सहिपाल। यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि ये दोहे कवि गोपाल के द्वारा रचित है अथवा प्रकाशक-सपादव की रचना है। अन्य प्रतिय में ये दोहे नहीं है, अत इनका गापालराय क द्वारा रा जाना सदिग्घ है । यदि ये कवि के द्वारा रचे हुए है, तो कृष्णगढ़ वें राजा पृथ्वीसिंह स भी कवि का सवध स्थापित हो जाता है । कियनगद़ मे उम स्मय इस प्रकार के कविया का सम्मान विशेष था । पर, यदि ववि वा सवध इस दरवार से होता तो वृन्दावनवाली प्रति में अवध्य ही इसका उल्लेख होता । इस लिए कृष्णढ से कवि का सवध न मानना ही उचित प्रतीत होता है । इतना अवधद्य हैं कि कवि वा किसी राजा के दरवार से सबध था । यह लगता है कि गोपालराय के पूर्वंन पणेत किसी राजा के दरवार से सबद्ध होगे। गोपाल कवि का मबध उम दरवार से नाममसात्र का रह गया होगा । यदि कसी राजा क॑ पूर्णत आश्षित होकर गोपाल अपनी रचनाएँ करते तो कही न कही अश्रयदाता का नाम भी अता! নলনূি না निर्वाह करते हुए भी कवि ने अपनी काव्य-सार्धना समभवत स्वतन रहवर ही की । २. ऋृतित्व गोपाल कवि को प्रतिभा, अभ्यास ओर वश-परम्परा सभी कुछ सिला | इसी विरासत ने उन्हें एक बहुत क्वि वना दिया। गोपाल कवि ने दति वाक्य विास के अनिम भाग मं अपनी পা শা শী ~~~ १. दंपति बाकय विछास (मुद्रित प्रति) पृ ৭০ `




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