छाया में | Chhaya Me
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अविश्वास यार
अपनी वसीयत और कागजात वगैरह ठौक करके बकीलके पास सौंप आया
हूँ । आप छोग बेकार कुछ न सोचें। मुझे ही मरना है । यह भूठ नहीं
द्वोगा । मनहूस घड़ी सुकपर टछ जावेगी ।”
“+--तभी एक विद्यार्थी कह बैठा, “आप गलत कह रहे है । सुकं
तो जीनेका जरा भी उत्साह नहीं है। न जाने किव-किन उपम्मेदोंके साथ
एम्० ए० पास किया था | पास करनेके बाद सोचा, अब निरिचन्त होकर
गहुगा। लेकिन मुसीबतोंने साथ नहीं छोड़ा । बेकारी--बेकारी !! पिछले
दिनों रहने और खाने-पीनेकी ठीक व्यवस्था न होनेकी वजद्से बीमार पड़
गया । सरकारी अस्पतालमें भरती हुआ | खांसी लगातार जोककी तरह
चिपटी रही । बुखार भी भाया करता था। डक्टरोने दो महीने रखनेके
बाद निकाल दिया, कहकर, क्षयके मरीजका क्या है। वह तो सालों रोग
घसीटता-घसीठता पंगुकी तरह जीवित रहा करता है. । अस्पताल कोई स्वर्ग
के रोगियोंके लिये आश्रय थोड़े ही है। अब आप ही समम्यि कि में
उत्साह कासे बटोर ला । भँ खुद उस मौतसे निपटना चाहता हूँ, ताकि
इस व्यर्थ शरीरसे छुटकारा पा जाऊँ । आज तेरहका नम्बर देखकर '**** ॥”
बह खांसने छगा । बड़ी देरतक उसकी खुट-खुट-खुट करती खांसी
डिब्बेके पटड़ोंपर खट-खट-खंठ बज, प्रतिध्वनित हुई 1 वह सुस्त पड़ धीर
स्वसमें बोला, “ऐसी जिन्दगीको चालू रखकर वेया फायदा ह । साज भव
निश्चिम्त हो? *** 122
“औ-हो-हो-हो 1? हमारे नजदीक बैठे, बरांडी कोट पहिने, पलटनके
हवलदारने हंसते हुए कहता शुरू किया । “मौतकी संजिल पार करनेवाले,
एक ऐसे ही दिल मैंने प्रेम किया था ।?
॥
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