छाया में | Chhaya Me

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अविश्वास यार अपनी वसीयत और कागजात वगैरह ठौक करके बकीलके पास सौंप आया हूँ । आप छोग बेकार कुछ न सोचें। मुझे ही मरना है । यह भूठ नहीं द्वोगा । मनहूस घड़ी सुकपर टछ जावेगी ।” “+--तभी एक विद्यार्थी कह बैठा, “आप गलत कह रहे है । सुकं तो जीनेका जरा भी उत्साह नहीं है। न जाने किव-किन उपम्मेदोंके साथ एम्० ए० पास किया था | पास करनेके बाद सोचा, अब निरिचन्त होकर गहुगा। लेकिन मुसीबतोंने साथ नहीं छोड़ा । बेकारी--बेकारी !! पिछले दिनों रहने और खाने-पीनेकी ठीक व्यवस्था न होनेकी वजद्से बीमार पड़ गया । सरकारी अस्पतालमें भरती हुआ | खांसी लगातार जोककी तरह चिपटी रही । बुखार भी भाया करता था। डक्टरोने दो महीने रखनेके बाद निकाल दिया, कहकर, क्षयके मरीजका क्या है। वह तो सालों रोग घसीटता-घसीठता पंगुकी तरह जीवित रहा करता है. । अस्पताल कोई स्वर्ग के रोगियोंके लिये आश्रय थोड़े ही है। अब आप ही समम्यि कि में उत्साह कासे बटोर ला । भँ खुद उस मौतसे निपटना चाहता हूँ, ताकि इस व्यर्थ शरीरसे छुटकारा पा जाऊँ । आज तेरहका नम्बर देखकर '**** ॥” बह खांसने छगा । बड़ी देरतक उसकी खुट-खुट-खुट करती खांसी डिब्बेके पटड़ोंपर खट-खट-खंठ बज, प्रतिध्वनित हुई 1 वह सुस्त पड़ धीर स्वसमें बोला, “ऐसी जिन्दगीको चालू रखकर वेया फायदा ह । साज भव निश्चिम्त हो? *** 122 “औ-हो-हो-हो 1? हमारे नजदीक बैठे, बरांडी कोट पहिने, पलटनके हवलदारने हंसते हुए कहता शुरू किया । “मौतकी संजिल पार करनेवाले, एक ऐसे ही दिल मैंने प्रेम किया था ।? ॥




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