तेरापंथ दिग्दर्शन | Terapanth Digdarshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ जन नही । वे अपने बालों का लुचन करते हँ और इसके लिए कैंची, उस्तरे आदि का उपयोग नही करते। माधुकरी भिक्षा সে জন साधुओ की भिक्षा के सम्बन्ध में शास्त्रकारों ने कहा है-- जहा दुम्मस्स पुप्फेसु भमरो आवियई হব” श्रर्थात्‌ जैसे भ्रमर सुविकसित फूलो से थोड़ा-थोडा रस लेकर तृप्त रहता है, उसी प्रकार साधु बहुत सारे घरों से थोड़ा-थोड़ा भोजन लेकर तृप्त रहे। जैन साधु के भिक्षा-प्रहण मे भ्रहिसा का पूरा विवेक बरता जाता है। अपने लिए बना भोजन वे नही लेते। गृहस्थ श्रपने लिए वनाए गए भोजन से श्रपनी भ्रावद्यकता को सीमित कर जो भोजन देता है वही उनके लिए ग्राह्य है । यही नियम वस्त्र, पात्र, पुस्तक श्रादि प्रत्येक ग्राह्य पदार्थो के लिए लागू होता है! सिद्धान्त पक्ष वैसे तो तेरापंथ का समग्र सिद्धान्त जैन आगमों को प्रमाण मानकर चलता है फिर भी श्राचायं श्री भिक्षुगणी ने बहुत सारे विषयों मे जैन-शस््ौो काही एक गंभीर चिन्तन संसार के सामने रखा , जहाँ तक सामान्य लोक-चिन्तनं सहसा नही पहुंच पाता। दया च श्रनुकम्पा कै विषय मे उन्होने कहा ; लोग कहा करते हं, वचाग्रो, पर सर्वाग विद्ध और व्यापक सिद्धान्त मत मारोकाही है बचाभ्रो की वात तो स्वयं ही उसमे श्रन्तहित हौ जाती है। बचाओ के एकान्तिक उपदेश मे मारते रहौ की वात भी परोक्ष रूप से स्वीकृत हो जाती है, क्योकि मारने की प्रवृत्ति न रहे तो वचने का कोई भ्रसंग ही उपस्थित नहीं होता।




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