देव और विहारी | Dev Aur Bihari

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Dev Aur Bihari by कृष्णबिहारी मिश्र - KrishnaBihari Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२० देव श्रौर विष्ारी विशेषता ते पाया जाया है। मराठी के प्रसिद्ध लेखक चिंपलुशकर षौ सम्पि ध হই দুল कथन के पक्ष में है । मदामति पोष प_. अपने 'समाजोचनाौपर निष मे यदो घात कहे 1 देसी दण में यह बात निर्विदाद सिद्ध है कि सदा से सब आापाओों में शब्द महरता फ्राष्प की सद्दायता ক্ষন मानी गई है । अठपुथ जिस भापा में सहज माधुरी हो, घ६ कविता के किये विशेष उपयुक्त होगी, यद घात भी নিহিত বিজু হী गई । পাশে £ इसक सिवा जा और रद गई अथात्‌ पदन्‍तालिस्य, एदुना, मधुरता इन्यादि, से। लव प्रका से गोण री ६। थे सूप काब्य की शोमा निस्सेट पाती २, पर एसा भा नहीं कदा ता सकता कि रूण्य की शेभा इ परर) ( निवधमातादश, पूष्ठ ३१ और ६० ५ दक युर्णो फी 'अप्रगन रेइन 4 दसाश यह अभिप्राय कापि पी উনি নাচন तिम उता श्राचस्यन्या श লগ ৯। मत्याग्य भें ही पघापफा नया दी जाते, गे उसका रपणायता দা व काटी बड़ा दते ‡\ লব নালা के पनोर्यनाथ रल या जैन दन > पनित মাল্টা হত টি ই ठा आब्य को उप्र रण > प्रदरय चमस मरना श्य ( [प्र [दाः शर 21, \




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