अनुभूति और चिन्तन | Anubhuti Aur Chintan

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Anubhuti Aur Chintan by कमलेश - Kamalesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्विपेदी-युग ओर निबन्ध निचन्ध की कोई सवमाच्य परिभाषा नहीं दी गई है । समय-समय पर परि- भाषायें बदलती रही है । यदि निवन्ध शब्द पर विचार किया जाय तो यह स्पष्ट हो जायगा कि निवध्नातीत निवन्वः + जो किं वघ जाता है अथवा जिसमें विचार बंध जाते है वही निवन्ध है। निवन्‍्ध शब्द की ध्वनि से भी यही स्पष्ट होता हैं, कि निवन्ध वही है जिसमें हमारे विचार, भाव अपनी सीमा में बंधे होते है ! हिन्दी के आलोचक ने भी इस शब्द की कोई अपनी परिभाषा नहीं दी है। आचायें शुक्ल, यदि गद्य कवियों या छेखकों की कसौटी है तो निवन्ध गद्य की कसौटी है',* यही उक्ति कह करके निवन्व के विषय मे शान्त रह गये है । यह्‌ स्यष्टहै कि उक्त वात से निचन्ध की कोई परिभापा नही मिरु पाती । ौष्टेन ने निवन्व को साहित्य की वह्‌ विद्या माना है जिसमें लेखक के आत्म प्रकाशन का प्रयास मात्र रहता है। फ्रांसिस वेकन ने निवन्ध को विक्तेणे चिन्तन' के सूप में माना है । डॉ० जामसन ने निवन्ध को मस्तिप्क का शिथिल प्रकाशन * माना है तथा उनका कहना है कि उसमें क्मवद्धता और एक ग्ड खला नही रहती । डॉ० जान्सन की यह परिभणा कुछ उचित नहो प्रतीत होती । निवन्ध में निवच्धकार के विचारों का एक क्रमवद्ध चित्रण रहता हैं, यदि चित्रण ऋमबद्ध न हुआ तो निबन्ध की मसफलता मनिी जाती है । अतएव डा० जान्सन कौ यह्‌ उक्ति कि 1ग्गटह्णाराः िंडल्डल्व 01९९९ ह कुछ तर्क सम्मत नहीं प्रतील होती । निवन्धकार के मानसिक स्थिति का स्पष्टी- १ शब्द फल्पद्रमः स्थांत्‌ राजा राधाकान्त देव वहादुरेण विरचितः ह्वि० क्वाण्ड सन्‌ १८१४ ई पृष्ठ एय 1 २ हि० सरा० का इति° पं रामचन्द्र शुक्ल पृष्ठ ४०५ । 3 27 दरव ২5 10৩ ৪০ 06 18৩ 556১ 2 उ्रटहुणाडः पफत&६5।६९ एंच्टट, 7०६ 2. 78125 2550. 070৩7] ০9207903380, 107. 09100500,




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