संचिता | Sanchita

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Sanchita  by ठाकुर गोपालशरण सिंह -Thakur Gopalsharan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दया क्षमा ममता आदिक हैं, तेरे रतां के भाण्टार; हैं निमल जल, शुद्ध वायु ही, तेरे जीवन के उपहार | छल से रहता दूर किन्तु तू, बल-पोरुष ,, में हे भरपूर; तेरे जीवन-धन हैं जग में, बस किसान एवं मज़दर । कोयल तुभे सुना जातौ है, मधुमय ऋतुपति का सन्देश; खेतों मे पोघे उग-उग कर, देते हैं तुकका उपदेश | जग को जगमग करनेवाला, है तुकमें न प्रकाश महान; पर मिट्टी के ही दीपक से, रहता है तू ज्येोतिष्यान । 9 आस




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