जगतसेठ | Jagatasetha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
511
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शिक्षा महताबराय को अवश्य मिली थी और इसका पालन करना उन्होंने
अपना परम कतंव्य समझा। उनक या दूसरों के लिए अपने देश-काल से ऊपर
उठ जाना या बोसवों सदी में पहुँच जाना असंभव था।
इसमें संदेह नहीं कि बंगाल में अंगरेजी राज्य की स्थापना में जगत॒सेठ
से बहुमल्य सहायता मिली, यद्यपि अठारहवों शताब्दी में यह निश्चित था कि
उस सहायता के बिना भी वह राज्य स्थापित होकर ही रहता। इतिहास
की लोला को व्यापक दृष्टि से देखने वाले यह स्वीकार किये बिना नहों रह
सकते कि मुगलों की अधोगति और विनाश में अंगरेजों का अभ्युदय
और राज्यारोहणः सबश्नचिहित था। एक तो उनके प्रतिद्वंद्वियों में कोई
भी उनकी बराबरी करने वाला न था; दूषरे, पलासी की लडाई का फंसलां
करनाल में और बक्सर की लड़ाई का फंसला पानीपत में ही हो चुका था।
मोर जाफर ही नहीं, मीर कासिम भी मरने से पहले ही मर चुका था और
क्षय तथा जय कराने वाला काल अंगरेज-मात्र को पकार कर कह चुका था कि
तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ, यशो लभस्व, जित्वा शत्रून्मुडक््व राज्यं समृद्धम् ;
मयैवैते निहताः पूवमेव, निमित्तमात्रं भव “हेट-घधारिन् !
बंगाल में पड़ने वाली नींव पर ही वह इमारत खड़ी हुई जो बढ़ते बढ़ते
एक दिन आसमान चमने वाली थी। यद्यपि उस विस्तार की कहानो इस पुस्तक
को दृष्टि से विषयान्तर है, तथापि उसका भी उपक्रम शुजाउद्देला के १७७५
में मर जाने से पहले ही हो चुका था। क्लाइब के प्रस्थान करने से पहले ही
जगत्सेठ के धर का चिराग टिमटिमाने लगा था ओर वारेन हेस्टिम्स के जते
जाते तो पवां हवा का झोंका उसे गुल कर चुका था ।
कई शताब्दियों से हिदू-जाति इतिहास लिखने-पटने को उपेक्षा करती
आई हैँ । इस कारण जगत्सेठ-बंध का कोई ऐसा वृत्तान्त नहीं मिलता जो ,
उसका लिखा-लिखाया हुआ हो । अन्धकार में उसके इतिहास पर “मुता-
खरीन जैसे प्र॑थया ईस्ट इंडिया कंपनी के कागजात से जो प्रकाश पड़ता है
बह गनीमत है । यह बात निश्चित-सी हैँ कि बाकी बातों की जिज्ञासा पूरी
करने के लिए नयी सामग्री आज मुशिदाबाद में या अन्यत्र मिलने वाली नहीं।
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