साहित्यिकों से | Sahityikon Se

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ 4 साहित्यिकों से उसको अच्छे-साहित्य में गिनती हो सकती हू । साहित्यिकों से मेरा प्रेम रहा हे, और उनकी मुझ पर कृपा भी रही हू । में उनकी कदर करता हूँ । में मानता हूँ कि सामाजिक जीवन मं उनका स्थान ऊचा हैं, इसलिए मेन साहित्यिकों को “देवर्ष” कहा हु । ऋषि तीन प्रकार के हीते हें: ब्रह्मषि, राजषि और देव्षि। जो तत्त्व-चितन' में मस्न रहते हैं, जीवन की गहरोई में पठते हें, उन्हें ब्रह्म कहा जाता ह । ब्रह्य क चितन को राजर्षि व्यवहार में लाते हे, और देवषि' उसका गायन करते हं । नारद देवषि.थे । सहज प्रेरणा - साहित्य आत्महेतु के लिए होता हं, परमेश्वर कं लिए होता है, ओरं अहतुक भी होता हं । ` कुल मिलाकर साहित्यिकों से बोले बगेर, लिखे वगर रहा नहीं जाता । उन्हें सहज प्रेरणा होती है, अन्तःस्फूति होती हं, जसे, गंगा सहज बहती हे, सूरज सहज प्रकाशं , देता है । सूरज को उसका भान नहीं होता ह कि में प्रकाश दे रहां | हूँ । उसी तरह देवषि स्वाभाविकं रूप से बोलेंगे, रोयेंगे । हेतु-पूर्वक बोलेंगे तो भी गायेंगे । साश्त्यिकों का स्थान बहुंत' ही ऊंचा हू। भगवद्गीता' का मतलब हु--भगवान्‌ को गायी हुई चीज । इसलिए साहित्िकों का जीवन मं विदोषस्थानहं । ` ` ` 7 अज्ञात दवषि | इस जमाने में भी ऐसे देवषि हुए हें । रंवीन्द्रनाथ ठाकुर देवर्षि थे । जो इडे होते हे, प्रसिद्ध होते हें, वे ही अच्छे गौर उत्तम साहित्यक होत हेः एसी कौत नहीं हं । वे तो अच्छे हु ही, परन्तु उनसे भौ वदकर्‌ वे हो सकते हं, जिन्हें लोग जानते नहीं 1 सुरज क सगत प्रकार कौ क्रिरे हम जतिः, परन्तु जो अल्टरावायोलेट' मौर ्रंफारेड-जेसी




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