अष्टछाप के कवि नन्ददास | Ashtchhap Ke Kavi Nanddas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
338
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नन््ददाप का जीवन-वृत्त ७
को प्रभाव जानेगे। पाछे तमस्ददास मे श्रीमोवद्धंननाय मो विनती करी! सो
दोहा :--
कहा कही छवि ग्राज की, भले बने हो नाथ ।
तुलसी मस्तक लत नपे, धनूपव्राणा केउ हाथ ॥।
यह बात सुनिके श्रीनाथ जी को विचार भयों, जो श्री गुमाई जी के
सेवक कहें, सो हमक भानन्यो चाहिए । पाछे श्री गोपद्धंननाथ जी ने श्री राम चन्द्र
को रूप धरि के तुलसीदास जी को दर्शन दिए [/
इसी प्रकार गोकुल में भी गुमाई विट्ठलनाथ ने क्रृष्णा का प्रभाव और
रामकृष्णा के श्रमेदत्व से तुलसीदास को (अपने पुत्र रघुनाथ और उप्तकी बहु
को राम-सीता के रूप में दर्शन करा कर) परिचित कराया |
९. नन्ददास ने तुलसी के मानस के ग्रतुकरणा पर भागवत्त की भाषा
प्रारम्भ की, परन्तु ग्रुवाई जी के रोकने पर् तब्रजनीला तक रखकर देष
को जल पे समाप्त कर दिया ।
१०, ननन््ददास जी बल्नभ सम्प्रदाय में आने से पहले भी पद-र्चना
किया करते थे | यमुनास्तुति के पद उन्होंने पहले ही लिखे |
११, उनकी मृत्यु अ्रकबर भौर बीरबल के सामने ही मानसीगगा पर
हुई । यहे प्रसंगं दस प्रकार है । एक बार तानेसेच नं नेन्ददास क रचा एक
णद झकक्षर बादआह को सुनाया | भ्रकबर बहुत प्रसन्न हृप्रा, श्रौर बीरबल से
नन््दवास को बुलाने को कहा | बीरवल नन्ददास को बुलाने गोपालपुर गया |
€ तब नम्ददास ने बीरबल सो कह्यो --मोकों अभ्रव्बर पातसाह सो कहा प्रयोजन
है? मोक्तो कहु द्रव्य की चाहना नाहि, जो में जाऊँ। आ्रौर मेरे कछ द्रव्य नाही
जो झ्रकथर पातसाह लेबयोगा । ताते हमारो कहा काम है ?
तब बीरबल मे कह्यो--जो तुम सम चलोगे तो श्रवाबर पातसाह ही
तुमारेश्ास भ्रावेगों | तब नेन्ददास ने कही ~--जो तुम इृहाँ बाकी मति लाथो |
यहाँ भीह को काम नाही है | বারী मै सेनश्रारती पचि श्री गरुसाई जी
४ कि न कनक শপ ध्मीणण
१ ककसैकज्ञी के সিল विभाग नन्दद्ास की घार्ता-प्रसंग चार
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