कहानी की कहानी | Kahani Ki Kahani

Kahani Ki Kahani by प्रो. कृष्णदेव - Prof. Krishnadev

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ कहानी की कहानी की मामिक शअ्रभिव्यक्ति होती है। पर इतना होते हुए भी दोनों के शिल्प- विधान में मूलत भेद है । किसी कटे-छटे उपन्यास को कहानी कहना उतना ही हास्यास्पद है जितना किसी बड़ी कहानी को छोटा उपन्यास या उपन्यास का कोई श्रनुच्छेद कहना । दोनों की रचना-प्रक्रिया श्र गठन में भ्रन्तर है । यह श्रावस्यक नहीं कि एक सफल उपन्यासकार सफल कहानीकार भी हो । एक के शिल्प-विधान मैं पारंगत होना दूसरे में भी कुशलता का प्रमाण नहीं माना जा सकता । यद्यपि उपन्यास आर कहानी दोनों के--कथा वस्तु चरित्र- चित्रण कथोपकथन देशकाल-वातावरण भाषा-दली उद्देक्य श्र भाव- रस--ये समान तत्त्व गिनाये जाते हैं पर इन तत्त्वों की अनिवायंता तथा प्रयोग -की हष्टि से दोनों में भारी शभ्रन्तर है । नीचे हम कहानी के तत्त्वों पर विशद्‌ प्रकाश डालते हुए साथ ही दोनों का अन्तर भी स्पष्ट करेंगे । कथावस्तु कथावस्तु के ढांचे पर ही कहानी निर्मित हीती है। कहानी की कथावस्तु भ्रत्यन्त संक्षिप्त रहती है। उपन्यासकार जीवन के नाना पक्षों से सम्बंधित व्यापक कथा-सामगय्री का चयन करता है किन्तु -कहानीकार किसी एक ही मामिक पहलू की भांकी देता है। उपन्यासकार की तरह वह अपनी कथा को न जटिल रूप दे सकता है न प्रासंगिक कथाश्ों में घुमा सकता है । कहानीकार सीधा शझ्रपने एक ही कथा-तत्व को लक्ष्य की ओर बढ़ाता है। उपन्यासकार भिन्न-भिन्न प्रासंगिक कथाओं में से घुमाता हुआ श्रपनी सुख्य कथा को मंथर गति से शभ्रंत की झोर ले जाता है। मामिक पहलू को कल्पना या चयन के परचातू कहानीकार को चाहिए कि वह श्रपनी कथा-सामग्री को कौतूहलवद्धंक तारतम्य के साथ सम्बद्ध रूप में प्रस्तुत करे । उसकी नियोजना में उत्सुकता का होना आवश्यक है। कथा यथार्थ स्वा- भाविक और संभाव्य होनी चाहिए । जहां उपन्यास में कथा-विकास के पांय सोपान--झारंभ विकास चरमसीमा निगति श्रौर झंत--होते हैं वहां कहानी में केवल पहले तीन सोपान ही रहते हैं । संसार की श्रेष्ठतम कहानियां श्आरंभ के साथ ही किसी संघष या इन्द्व के रूप में विकसित होती हैं श्रौर




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