अष्टछाप के कवि नन्ददास | Ashtchhap Ke Kavi Nanddas

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Book Image : अष्टछाप के कवि नन्ददास  - Ashtchhap Ke Kavi Nanddas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नन्‍्ददाप का जीवन-वृत्त ७ को प्रभाव जानेगे। पाछे तमस्ददास मे श्रीमोवद्धंननाय मो विनती करी! सो दोहा :-- कहा कही छवि ग्राज की, भले बने हो नाथ । तुलसी मस्तक लत नपे, धनूपव्राणा केउ हाथ ॥। यह बात सुनिके श्रीनाथ जी को विचार भयों, जो श्री गुमाई जी के सेवक कहें, सो हमक भानन्‍यो चाहिए । पाछे श्री गोपद्धंननाथ जी ने श्री राम चन्द्र को रूप धरि के तुलसीदास जी को दर्शन दिए [/ इसी प्रकार गोकुल में भी गुमाई विट्ठलनाथ ने क्रृष्णा का प्रभाव और रामकृष्णा के श्रमेदत्व से तुलसीदास को (अपने पुत्र रघुनाथ और उप्तकी बहु को राम-सीता के रूप में दर्शन करा कर) परिचित कराया | ९. नन्ददास ने तुलसी के मानस के ग्रतुकरणा पर भागवत्त की भाषा प्रारम्भ की, परन्तु ग्रुवाई जी के रोकने पर्‌ तब्रजनीला तक रखकर देष को जल पे समाप्त कर दिया । १०, ननन्‍्ददास जी बल्नभ सम्प्रदाय में आने से पहले भी पद-र्चना किया करते थे | यमुनास्तुति के पद उन्होंने पहले ही लिखे | ११, उनकी मृत्यु अ्रकबर भौर बीरबल के सामने ही मानसीगगा पर हुई । यहे प्रसंगं दस प्रकार है । एक बार तानेसेच नं नेन्ददास क रचा एक णद झकक्षर बादआह को सुनाया | भ्रकबर बहुत प्रसन्न हृप्रा, श्रौर बीरबल से नन्‍्दवास को बुलाने को कहा | बीरवल नन्ददास को बुलाने गोपालपुर गया | € तब नम्ददास ने बीरबल सो कह्यो --मोकों अभ्रव्बर पातसाह सो कहा प्रयोजन है? मोक्तो कहु द्रव्य की चाहना नाहि, जो में जाऊँ। आ्रौर मेरे कछ द्रव्य नाही जो झ्रकथर पातसाह लेबयोगा । ताते हमारो कहा काम है ? तब बीरबल मे कह्यो--जो तुम सम चलोगे तो श्रवाबर पातसाह ही तुमारेश्ास भ्रावेगों | तब नेन्ददास ने कही ~--जो तुम इृहाँ बाकी मति लाथो | यहाँ भीह को काम नाही है | বারী मै सेनश्रारती पचि श्री गरुसाई जी ४ कि न कनक শপ ध्मीणण १ ककसैकज्ञी के সিল विभाग नन्दद्‌ास की घार्ता-प्रसंग चार




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