सेगांव का संत | Segaon Ka Sant

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Segaon Ka Sant by श्रीमन्नारायण अग्रवाल - Srimannarayan Agrwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ सेगाँव का संत “अच्छा, तो आपको मेरा और मीरा का, जिंसकी झोपड़ी यहाँ से क़रीब डेढ़ मील पर है, मेहमान ज़रूर रहना पड़ेगा। आप जब चाहें, तब यहाँ आ सकती हैं ।” ' इस कृपा के लिये मैं आपकी बहुत शुक्रगुज्ार हूँ ।” : महात्माजी को पास से देखने का मेरा यह पहला ही अवसर था। में तो उनकी आनंद्मय खिलखिलाहट सुनकर दूँग रह गया। मेरा विचार था, महात्माजी काफी गंभीर और जुपचाप रहते होंगे। लेकिन उनकी बच्चों की तरह भोली और दिलखुली हँसी देखकर मुझे बड़ा आनंद हुआ 'महात्माश्रों” की तरह मुं ह फुलाकर बैठना तो वह सह नहीं सकते । उनका तो यह कहना है. कि मैं बिना हँसी और मज़ाक़ के ज़िंदा ही नहीं रह सकता | एक-एक बात में भज़ाक़ और विनोद भरा रहता है। ओर, अपनी सहृदय हँसी से वह सब लोगों में एक प्रकार का जीवन डालते रहते हैं । « थोड़ी देर बाद' एक बड़ी मूदोंवाला बूढ़ा आदमी अंदर आया । बाद में मालूम हुआ ;कि वह सेगाँव का पटेल था। गांधीजी ने उससे हँसकर पूछा--“भाई पदेल, तो क्या मुझको ही अब दाढ़ी बढ़ानी पड़ेगी ?” “नहीं महात्माजी, नाई तो आपके पास हमेशा आने को तैयार है ।” ु “लेकिन में अपनी दाढ़ी उस নাই से कैसे बनवा सकतां हूँ। क्या वह मेरे लड़कों की भी हजामत बनाने को तैयार




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