वैदिक-संग्रह | Vaidik Sangrah

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Vaidik Sangrah by डॉ. कृष्ण लाल - Dr. Krishna Lal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पिन डे देदतागों को यशों में लाना धाइतियों का दहन करना इत्यादि हैं। यद्यपि ये क्रियाएँ भौतिक भग्ति से सम्बद्ध हैं तयापि ऋग्वेदिक ऋषियों ने उसके प्राध्यार्मिक रूप का भी विशद वर्णन किया है । प्रतीकार्थ में तो वासुदेवशरण झग्रवाल प्रमृति झ्नेक विद्वान उपर्युक्त क्रियापों को भी भाध्यार्मिक हो मानते हैं। ऋग्वेद में स्पट्ट उल्लेख है कि मरणुघर्मा मनुष्यों में भमर श्रग्ति का निधान किया मया--मेवरवस्तिरमुतों नि्ामि । यहाँ अग्नि परमतत्त्व के तुल्य है। बह न केवल मौतिक समृद्धि का स्वामी है घ्रपितु भमर-समृद्धि का भी--ईशे ह्वास्निरसृतस्प भूरेरीशे रायः सुदोपंस्य दातोः । उत्पन्न होते हो बह सब सोकों को देख सेना है । बहू सब में प्रमुख है वह मुख है । पुरुष सूक्त में भरत का जन्म पुरुष के मुख से बतामा गपर है--मुखादिन्दश्दीर्निदच । ०व्रा० ३। छाराई में भर्ति को देवतामों का मुख कहा है --झग्नियं देवानां मुख प्रजन- पिता । ते ०्या० १1८1५८1१ में माता है कि भग्ति ऋत को प्रयम सम्तान है देवतामों से पूर्व उत्पन्न हुभा है भीर झमरत्व का केन्द्र भमृतस्य नाभि है । भर का सबसे भरधिक सम्दन्य इन्द्र से है । भ्रनेक सूक्तो पे इनको सह स्तुति हुई है । सम्मव है कि इस रूप में ये दोनों देव सूर्य के रूप में झाते हो । यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि इन्द्र के मूत में मानी गई इन्दू थातु का भर्य झग्नि का गुण या प्रज्वलित होना ही है । दोनो को ही वृत्रता कहा गया है। वे दोनो साथ साथ बढने वाले हैं। श०्ब्ा० ६२२२८ में इन्द्राग्नी को सभी देवों का प्रतिनिधि माना गया है--इस्डार्ती बे सेव देवा. । धन्य देवताभों के भ्तिरिक्त भग्नि का सोम के साथ सम्बन्ध विशेष रूप से उल्लेखनीय है। ऋण इ४िडा रै५ में सोम भार्नि के पास जाकर श्रपना सख्य प्रकट परता है। जिस प्रकार इन्द्र सोम से भमिवृद्ध होता है उसी प्रकार प्रति भी + प्रति का मतों के साथ झाह्वान किया गया है । यों तो भ्नेक देवों को भग्नि के नाम से भमिहित किया गया है किन्तु रुद के लिये अग्नि का नाम महत्त्वपूर्ण है क्योकि भन्य सहिताभो तथा श्राह्मणप्रत्यों मे यह परम्परा पुनरावृत्ति के कारण भौर सुदढ हो गई है श०दा० शारा। १३--यो बे रुद्र सोशर्ति 1 झग्नि दाव्द की तुलना लेंटिन इग्निसू स्लंवानिक भोग्नि झादि से की जा सकतीं है। भोर इससे इस शब्द के विस्तार का ज्ञान होता है। यास्क द्वारा शरद निरक्तियों भहगं नयति सन्नममानः प्रत्येक पदार्थ की भ्ोर श्रदृत्त होता हम उसके शरीर को ले लेता है झकदोपनो मदति सुखा देता है इतात्‌ इन्लजाना भ्रक्तादूदग्माड्टा प्ज्जू--लिप्त होना या दह_स्लजलना नीतादू नोस्लले जाना से भग्नि का भौतिक रूप अपर यनेदु प्रसीयते यश में भागे भागे ले जाया जाता है भग्रशीर्भवति सब का नेता हैं वे इसका




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