जैन हितैषी मासिक पत्र- भाग 9 | Jain Hitaishi Masikpatra - Bhag 9

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Jain Hitaishi Masikpatra - Bhag 9 by नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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9 यका विचार करनेसे इसका समय ११६० के रगमग निशित होता है। उक्त आचार्योमेंसे शुभकार्ति १११९ में स्वगवास करने वाले मेघचन्द्रके समकालीन थे। माघनन्द सैद्धान्तिकका समय ११६० है। भानुकीति ११६३ में समाधिस्थ होनेवारे देवकी तिके सहपाठी थे। अभयसूरि, बल्लाल नरेश और चारुकीर्ति पण्डितके समकालीन थे। क्योंकि ऐसा उलछेख मिलता है कि अभमयसूरिने ईने दोनोंकी एक बड़ी भारी व्याथिसे मुक्त करके श्रवरणबेलगुलमें निवास कराया था। बल्लार विष्णुवर्धन राजाका भाई था और चारुकीर्ति श्रुतकीर्तिका पुत्र था। श्रवणबेल्गुलके जैन गुरुओंने (चारुकीर्ति पण्डिताचा्य'का पद्‌ १११७ के अनन्तर धारण किया था । इससे मालूम होता है कि यह चारुकीर्ति श्रवणबेलगुलका सबसे प्रथम चारुकीर्ति पण्डित होगा। श्रवणबेलगुलके १११ वे शिलालेख विशालकीर्तिके शिष्य शुभकीर्ति, शुभकीर्तिके शिष्य धमभूषण और धम्ममूषणके शिष्य अमलकीति बतलाये गये हैं और शुभकीति १११९ में स्वगेस्थ होनेवाले मेघचन्द्रके समकालीन थे, इसलिए शुभकीर्तिके शिष्य धर्ममूषण और प्रशिष्य अमलकी- तिंका समय ११५० के हूगभग होना चाहिए। ये অমভন্কীনি या अमरकीर्ति ही वृत्तिविलासके गुरु थे। शिलालेखकी गुरुपरम्परा ओर धमंपरीक्षो छिखित गुरुपरम्परा बराबर मिलती है। ३६ बालचन्द्र--समय इस्वी सन्‌ ११७० । ये आध्यात्मिक बालचन्द्रके नामसे प्रसिद्ध हैं । ये मूलसंघ-देशीयगण-पुस्तकगच्छ ओर कुन्दकुन्दके अन्वयमें थे। इनके गुरुका नाम नयकीर्ति था। नयकी तिका स्वर्गवास ११७७ में हुआ था । देमनन्दि इनके भाईका ९ इनके बनाये हुए “आर्यतिरूक” नामके प्राकृत प्रन्थका उछेख मिलता है ॥




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