चुने हुए उपन्यास | Chune Hue Upanyas
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
95.88 MB
कुल पष्ठ :
772
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पुत्राँ नू दित्ते उच्चे महल ते. माड़ियाँ
धीयाँ न् दित्ता परदेस नीं ।
पूरो दौड़ी-दौड़ी आकर माँ के गले से लिपट गयी । माँ-बेटी दोनों रो पड़ीं ।
हर लड़की का यौवन उसे अपनी माँ से अलग कर देता है।
पूरो की माँ ने जी कड़ा किया । बेटी के कन्धे पर प्यार किया । सन्ध्या समय
का अन्धकार उन के आँगन में भी उतर आया था । पूरो की माँ को याद भाया
कि दूसरी चीज़ चढ़ाने को इस समय घर में कुछ भी नहीं थी, कौन जाने पूरो
की ससुराल से कोई आदमी आता ही हो ।
प्रो से उस ने कहा कि छोटी बहन की उँगली पकड़कर पास के खेतों में से
चार भिण्डियाँ ही तोड़ ला । और चावलों की एक मुट्ठी और गुड़ की भेली
डालकर मीठे चावल भी चढ़ा दे ।
पूरो का दिल भी आज भर-भर आता था । उस ने अपनी छोटी बहुत को
साथ लिया और बाहर चली गयी ।
प्रो ने भिण्डियाँ तोड़ीं, दो-चार सींगरे तोड़े और उलटे पाँव छोटी बहन
को साथ लेकर घर की ओर चली। लौटते समय पूरो को केवल यह विचार आ
रहा था कि अब वह अपनी माँ से अलग हो जायेगी, अपनी बहनों से बिछुड़
जायेगी, अपने नन्हे-से भाई से दूर चली जायेगी। वज्त्र के प्रहार के समान पूरो
को एकाएक ख़पाल आया, यदि यहाँ रशीद मिल जाये तो ?
और वह पाँव उठाकर चलने लगी । “पूरो, दौड़ क्यों रही है ?” पूरो को
छोटी बहन का साँस चढ़ गया था |
पूरो के पीछे की ओर से एक घोड़ी दौड़ती हुई आयी । पूरो अभी पगडण्डी
से हट भी न पायी थी कि न जाने घोड़ी या घुड़तसवार कौन पूरो के दाहिने कन्घें
से टकरा गया। पुरो गिरने ही लगी थी कि किसी ने उसे कन्धे से पकड़कर
घोड़ी के ऊपर डाल लिया । पूरो की चीखें उड़ती हुई घोड़ी के साथ पल-पल दूर
होती चली गयीं । उस की बहन खड़ी काँपती रह गयी ।
न जाने वह घोड़ी कहाँ से आयी थी, उस का सवार कौन था, घोड़ी कितनी
देर तक दौड़ती रही, पुरो अचेत थी ।
पूरो को जब होश आया, वह एक कमरे में चारपाई पर पड़ी थी। चारों
ओर दीवारें थीं, सामने एक बन्द दरवाज़ा ।
पूरो को सब कुछ याद आ गया । उस ने दीवारों से अपना सिर दे-दे मारा,
उस ने दरवाज़े से अपना सिर दे-दे मारा ।
द्ार-थक के पूरो चारपाई पर आ पड़ी । वह फिर अचेत हो गयी ।
पूरो को जब होश आया, कोई उस के सिर से गरम घी मल रहा था । पुरो
ने एक बार सोचा, शायद उस की माँ उस के सिरहाने बैठी हुई थी और पूरो को
10 / अमृता प्रीतम : चुने हुए उपन्यास
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