चुने हुए उपन्यास | Chune Hue Upanyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पुत्राँ नू दित्ते उच्चे महल ते. माड़ियाँ धीयाँ न्‌ दित्ता परदेस नीं । पूरो दौड़ी-दौड़ी आकर माँ के गले से लिपट गयी । माँ-बेटी दोनों रो पड़ीं । हर लड़की का यौवन उसे अपनी माँ से अलग कर देता है। पूरो की माँ ने जी कड़ा किया । बेटी के कन्धे पर प्यार किया । सन्ध्या समय का अन्धकार उन के आँगन में भी उतर आया था । पूरो की माँ को याद भाया कि दूसरी चीज़ चढ़ाने को इस समय घर में कुछ भी नहीं थी, कौन जाने पूरो की ससुराल से कोई आदमी आता ही हो । प्रो से उस ने कहा कि छोटी बहन की उँगली पकड़कर पास के खेतों में से चार भिण्डियाँ ही तोड़ ला । और चावलों की एक मुट्ठी और गुड़ की भेली डालकर मीठे चावल भी चढ़ा दे । पूरो का दिल भी आज भर-भर आता था । उस ने अपनी छोटी बहुत को साथ लिया और बाहर चली गयी । प्रो ने भिण्डियाँ तोड़ीं, दो-चार सींगरे तोड़े और उलटे पाँव छोटी बहन को साथ लेकर घर की ओर चली। लौटते समय पूरो को केवल यह विचार आ रहा था कि अब वह अपनी माँ से अलग हो जायेगी, अपनी बहनों से बिछुड़ जायेगी, अपने नन्हे-से भाई से दूर चली जायेगी। वज्त्र के प्रहार के समान पूरो को एकाएक ख़पाल आया, यदि यहाँ रशीद मिल जाये तो ? और वह पाँव उठाकर चलने लगी । “पूरो, दौड़ क्यों रही है ?” पूरो को छोटी बहन का साँस चढ़ गया था | पूरो के पीछे की ओर से एक घोड़ी दौड़ती हुई आयी । पूरो अभी पगडण्डी से हट भी न पायी थी कि न जाने घोड़ी या घुड़तसवार कौन पूरो के दाहिने कन्घें से टकरा गया। पुरो गिरने ही लगी थी कि किसी ने उसे कन्धे से पकड़कर घोड़ी के ऊपर डाल लिया । पूरो की चीखें उड़ती हुई घोड़ी के साथ पल-पल दूर होती चली गयीं । उस की बहन खड़ी काँपती रह गयी । न जाने वह घोड़ी कहाँ से आयी थी, उस का सवार कौन था, घोड़ी कितनी देर तक दौड़ती रही, पुरो अचेत थी । पूरो को जब होश आया, वह एक कमरे में चारपाई पर पड़ी थी। चारों ओर दीवारें थीं, सामने एक बन्द दरवाज़ा । पूरो को सब कुछ याद आ गया । उस ने दीवारों से अपना सिर दे-दे मारा, उस ने दरवाज़े से अपना सिर दे-दे मारा । द्ार-थक के पूरो चारपाई पर आ पड़ी । वह फिर अचेत हो गयी । पूरो को जब होश आया, कोई उस के सिर से गरम घी मल रहा था । पुरो ने एक बार सोचा, शायद उस की माँ उस के सिरहाने बैठी हुई थी और पूरो को 10 / अमृता प्रीतम : चुने हुए उपन्यास




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