जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश | Jainendra Siddhant Kos
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
556
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शरीर ७ ३. शरीरका कथंचित् दष्टानिष्टपना
स. सि,/२।४३।१६५।३ बुगप्वेकस्ार्मनः । कस्य दे तैजसकामणे, |--- ६६४
अपरस्य श्रीणि ओदारिकतं जसकार्मणानि बैक्रियिकते जसकार्मणानि | प्रमाण সানা संयोगी हि
बा । अन्यस्य चत्मारि औदारिकाहारतैजसकार्मणानि विभाग चिकंहप ट ई =
क्रियते । ~ एक साथ एक जीषके तैजस ओर कार्मणसे लेकर चार |__ हम दि व
शरीर तक बिकल्पते होते है ।४३। किसीके तैजस ओर कार्मणयेदो | ५. वेद मागंणा-
रसैर् होते है। अन्यके ओद।रिकं तेजस और कार्मण, या वैक्रियिक १४६ | पुरब वेद २.१.४ ( +| +| १ | ५ | १
तैजस ओर कार्मणये हीन दारीर होते हैं। किसी दूसरेके औदारिक | ,, | स्त्री, नपुंसक कः ॥ नः|| द| क| ७
तैजस ओर कार्मण तथा आहारक ये धार दारीर होते है । इस प्रकार | १५१ | अपगत बेदी ६ ||| >| +|
यह बिभाग यह किया गया । ( रा. बा.।२।४१।६।१९०।१६) ६. कषाय माग॑णा--
दे. अद्धि ।१० आहारक बै क्रियिक श्रुद्धिके एक साय होमेका निरोधहै। | ६० । चातो कषाय २,३४ | „|! |] १
२. शरीरके स्वामिरवको भदेश प्ररूपणा १८१ । भक्षाय ३ ७ | ५ भ
सके -अप.~ अपय; आहा, = आहारक; ओद. ओदारिक; ७. धान मागेणा
वेदो. -छेदोस्थायना; प, = पयिः बा, “मादर; वैक्रि,-बैक्रियिक:..| ९५२ | मतिशरत अहञान | ब (|
१५९३ | बिभंग ज्ञान ३.४ | >| १, >| ११] १
सा.~-सामान्यः सू. «सूक्ष्म । ५ १८४ | मत्ति, श्रुत, अबधिज्ञान | 3६३४ | + | ७ | ७ | ७ | ७
घ, रब, १४/४,६/सू- १११-१६६/२३८-२४५ ) ११४ | मनःपर्यय हि तक 9
17---াহ্নাচাছাহা ण 1 1 १६४ । केवबलहान ,,| >| | ११
ৃ मार्गणा सयौगी € (4 बट ८. सयम मगणा-
विकल न | प (च পাঁচ]
শত বা] তি। ˆ| १५६ संगत सा. सामायिक | 8.४ | ,, | » | | ७ | ४
1 ; छेदो , परिहार, सूक्ष्म
१. गति मागंणा- | १६७ | यथारूयात ३ ५ | ५ | ^
१३२- ¦ नरक सा, विशेष २,३ (>| | ८1 १११ १५६ | संयतासंमत ই (७ | चल
१३३ | १५८ असयत् २,३.४ | ,, | ७ ৮111৮
१३४ | तिर्य सा. पंचं, पं, २,२३.४ | ९ | १ | 2 ५ | र ९. देन मागंणा--
तिर्यचनी प. | १५६ | चक्ठु अचक्षु दर्शन डे | ५, | , | | ० ७
११३ तिय॑च पंचे, अप. २१३ । ५१ >| | १ ११ अषधि ' ५१ ९१ | 9} | १ | ११ च
१३६ | मनृष्य सा. प, २,३,४ | ७ এ ११ ११ | १९ १६० : केबलदर्शन ३ १५|| > | | ५ *९
मनुष्यणी अप. | | १०. लेश्या मागणा
१२७ | मनुष्य अप, २,३ | १५||, १ | ५ १९१ | कृष्ण, नील, कापोत २. |, | +| >| ११ | १
११८- | वैव. सा. विषयेष ४१ | | 26, ७५| » | पीठ, पद्म, शुक्ल पर ১0111781131
१३६ । ११. भव्यत्व मागंणा--
२. इन्दि मागणा- | १६१ | भव्य २.३.४ | ५ | १ १| १ | ७
१४० | ऐकेन्द्रिय सा, ब भा, प- मृष | के (5 | | » | ४ ५ । अभव्य क | ५ | १ [त | ++ | १
^ | षचेन्िसाप्, ५ | ५ | ५ | | १२. सम्यक्व मागंणा--
१४१ रएकेन्द्रि, मा, अप, २६३ এ রা १६३ | सम्यग्दृष्टि सा २,३,४ (4 कक हद पर
एकेन्द्रि, सू. प, अप + | क्षायिक, उपशम, बेदक व क (क च| ॐ
„ | बिकलेन्द्ि, ष, अष ] अ, ` | जह | ॐ + क |: सासावन 3९. ७६ | «० | हर | २० | ७४
| पचेद्र, अप । १६४ | লিগ ক এ | र
१, काय मार्गगा-- १६३ । मिध्यादृष्टि ९,१.४} १ | #| >| १ | १
१४१ | तेज बायु सा. २,३.४८ +|, | ८ ५ | १ १३. सं मा्गणा--
७ | श्रस सा, प. हः ^ + | > || इ | ' | অন্বস্কী ৭0151911515
१४२ | शोष सर्व प. अप, २,३ |, | >| >! +, | ++ १४. आहारक मागंणा--
४, योग मार्ग णा-- १९६ । आहारक हे | ५१ | ५ | ११ | १ | क
१४४ , पाँचों मन बचन योग ছড়ি, (,, | ,, | ५ |» | » ५ | अनाहारक চে
१४५ शष सानाभ्य ३२११४ | ,, | ., | ७ | » | ४
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१४६ রা মি ५ कि টি हट „^| + ३. शरीरका कथंचित् इष्टानिष्टपना
5 क्रि, मे क्रि, मिश्र ३ म | „+ | > | |
१४७ | अहा. आहा. मिश्र ट ৯180১৮15178 १. झरोर क र
१९८ ¦ कर्मण २३ | ,, | > | > न स. श.पू.।१॥ मूलं संसारदुःखस्य वेह एनात्मधीस्ततः । स्यक्त्वैनां
प्रनिरोदन्तबहिरव्य)पृतेभ्दिय' ।१६। “~ इस दारीरमें आत्मबुद्धिका
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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