जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश | Jainendra Siddhant Kos

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Jainendra Siddhant Kos by जिनेन्द्र वर्णी - Jinendra Varni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शरीर ७ ३. शरीरका कथंचित्‌ दष्टानिष्टपना स. सि,/२।४३।१६५।३ बुगप्वेकस्ार्मनः । कस्य दे तैजसकामणे, |--- ६६४ अपरस्य श्रीणि ओदारिकतं जसकार्मणानि बैक्रियिकते जसकार्मणानि | प्रमाण সানা संयोगी हि बा । अन्यस्य चत्मारि औदारिकाहारतैजसकार्मणानि विभाग चिकंहप ट ई = क्रियते । ~ एक साथ एक जीषके तैजस ओर कार्मणसे लेकर चार |__ हम दि व शरीर तक बिकल्पते होते है ।४३। किसीके तैजस ओर कार्मणयेदो | ५. वेद मागंणा- रसैर्‌ होते है। अन्यके ओद।रिकं तेजस और कार्मण, या वैक्रियिक १४६ | पुरब वेद २.१.४ ( +| +| १ | ५ | १ तैजस ओर कार्मणये हीन दारीर होते हैं। किसी दूसरेके औदारिक | ,, | स्त्री, नपुंसक कः ॥ नः|| द| क| ७ तैजस ओर कार्मण तथा आहारक ये धार दारीर होते है । इस प्रकार | १५१ | अपगत बेदी ६ ||| >| +| यह बिभाग यह किया गया । ( रा. बा.।२।४१।६।१९०।१६) ६. कषाय माग॑णा-- दे. अद्धि ।१० आहारक बै क्रियिक श्रुद्धिके एक साय होमेका निरोधहै। | ६० । चातो कषाय २,३४ | „|! |] १ २. शरीरके स्वामिरवको भदेश प्ररूपणा १८१ । भक्षाय ३ ७ | ५ भ सके -अप.~ अपय; आहा, = आहारक; ओद. ओदारिक; ७. धान मागेणा वेदो. -छेदोस्थायना; प, = पयिः बा, “मादर; वैक्रि,-बैक्रियिक:..| ९५२ | मतिशरत अहञान | ब (| १५९३ | बिभंग ज्ञान ३.४ | >| १, >| ११] १ सा.~-सामान्यः सू. «सूक्ष्म । ५ १८४ | मत्ति, श्रुत, अबधिज्ञान | 3६३४ | + | ७ | ७ | ७ | ७ घ, रब, १४/४,६/सू- १११-१६६/२३८-२४५ ) ११४ | मनःपर्यय हि तक 9 17---াহ্নাচাছাহা ण 1 1 १६४ । केवबलहान ,,| >| | ११ ৃ मार्गणा सयौगी € (4 बट ८. सयम मगणा- विकल न | प (च পাঁচ] শত বা] তি। ˆ| १५६ संगत सा. सामायिक | 8.४ | ,, | » | | ७ | ४ 1 ; छेदो , परिहार, सूक्ष्म १. गति मागंणा- | १६७ | यथारूयात ३ ५ | ५ | ^ १३२- ¦ नरक सा, विशेष २,३ (>| | ८1 १११ १५६ | संयतासंमत ই (७ | चल १३३ | १५८ असयत्‌ २,३.४ | ,, | ७ ৮111৮ १३४ | तिर्य सा. पंचं, पं, २,२३.४ | ९ | १ | 2 ५ | र ९. देन मागंणा-- तिर्यचनी प. | १५६ | चक्ठु अचक्षु दर्शन डे | ५, | , | | ० ७ ११३ तिय॑च पंचे, अप. २१३ । ५१ >| | १ ११ अषधि ' ५१ ९१ | 9} | १ | ११ च १३६ | मनृष्य सा. प, २,३,४ | ७ এ ११ ११ | १९ १६० : केबलदर्शन ३ १५|| > | | ५ *९ मनुष्यणी अप. | | १०. लेश्या मागणा १२७ | मनुष्य अप, २,३ | १५||, १ | ५ १९१ | कृष्ण, नील, कापोत २. |, | +| >| ११ | १ ११८- | वैव. सा. विषयेष ४१ | | 26, ७५| » | पीठ, पद्म, शुक्ल पर ১0111781131 १३६ । ११. भव्यत्व मागंणा-- २. इन्दि मागणा- | १६१ | भव्य २.३.४ | ५ | १ १| १ | ७ १४० | ऐकेन्द्रिय सा, ब भा, प- मृष | के (5 | | » | ४ ५ । अभव्य क | ५ | १ [त | ++ | १ ^ | षचेन्िसाप्‌, ५ | ५ | ५ | | १२. सम्यक्व मागंणा-- १४१ रएकेन्द्रि, मा, अप, २६३ এ রা १६३ | सम्यग्दृष्टि सा २,३,४ (4 कक हद पर एकेन्द्रि, सू. प, अप + | क्षायिक, उपशम, बेदक व क (क च| ॐ „ | बिकलेन्द्ि, ष, अष ] अ, ` | जह | ॐ + क |: सासावन 3९. ७६ | «० | हर | २० | ७४ | पचेद्र, अप । १६४ | লিগ ক এ | र १, काय मार्गगा-- १६३ । मिध्यादृष्टि ९,१.४} १ | #| >| १ | १ १४१ | तेज बायु सा. २,३.४८ +|, | ८ ५ | १ १३. सं मा्गणा-- ७ | श्रस सा, प. हः ^ + | > || इ | ' | অন্বস্কী ৭0151911515 १४२ | शोष सर्व प. अप, २,३ |, | >| >! +, | ++ १४. आहारक मागंणा-- ४, योग मार्ग णा-- १९६ । आहारक हे | ५१ | ५ | ११ | १ | क १४४ , पाँचों मन बचन योग ছড়ি, (,, | ,, | ५ |» | » ५ | अनाहारक চে १४५ शष सानाभ्य ३२११४ | ,, | ., | ७ | » | ४ शे रिक 9: , | | कः त | |च १४६ রা মি ५ कि টি हट „^| + ३. शरीरका कथंचित्‌ इष्टानिष्टपना 5 क्रि, मे क्रि, मिश्र ३ म | „+ | > | | १४७ | अहा. आहा. मिश्र ट ৯180১৮15178 १. झरोर क र १९८ ¦ कर्मण २३ | ,, | > | > न स. श.पू.।१॥ मूलं संसारदुःखस्य वेह एनात्मधीस्ततः । स्यक्त्वैनां प्रनिरोदन्तबहिरव्य)पृतेभ्दिय' ।१६। “~ इस दारीरमें आत्मबुद्धिका जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश




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