हिन्दी काव्य - कुसुमांजलि | Hindi Kavya Kusumanjali

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Hindi Kavya Kusumanjali by डॉ. दशरथ ओझा - Dr. Dashrath Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्र १--रामकाव्य का वण्यं विषय विष्णु के राम रूप की भक्तित है # रामानन्द द्वारा प्रचारित विशिष्टाद् त के आधार पर इसका विकास हुआ । द २--समस्त राम-काव्य की रचना, दोहा, चौपाई में ही श्रधिक हुई । साथ ही साथ क्‌ डलियाँ, छप्पय, सोरठा, सवेया, घना- क्षरी, तोमर और त्रिभंगी छन्दों का भी कवियों ने प्रयोग किया । ३--समस्त राम-काव्य प्रधानतः भ्रवधी भाषामें रचा गया। किन्तु अवधी के साथ-साथ ब्रजभाषा का प्रयोग भी यथेष्ठ रूप में हुआ। . ४--राम-काव्य में नव रसों का प्रयोग बड़ी कलात्मकता के साथ हुआ । किन्तु प्रधानतः शन्तश्रौरश्युगाररसकीरही। ` ५--राम-काव्य में राम के शक्ति, शील और सौन्दय तीनों गुणों की प्रतिष्ठा हुई । ६--राम-काव्य ने सामाजिक क्षेत्र में संयम, श्राद्श और महान्‌ जीवन मूल्यों का प्रतिपादन किया । ७--राम-काग्य ने भत मतान्तरों ्रौर सामाजिक क्षेत्रों में फैली विषमताओं का समन्वय रामकथा के माध्यम से बड़े सुन्दर ढंग से हुआ है । ८---राम काव्य में प्रबन्ध श्रौर मुक्तक दोनों शैलियों मे रचना हुईं । रामकाव्य के प्रतिनिधि कवि तुलसी है जिनका परिचय दिया गया है । कृष्ण-भक्ति शाखा--मध्यकालीन समस्त कृष्ण-भक्ति कन्य का श्रेय बल्लमाचायं को ही जाना चाहिए.क्योकि उन्ही के प्रचारित सिद्धांतों पर सुरदास तथा कूष्ण-मक्त कवियों ने रचना की । उन्होने ब्रह्मसूत्र, उपनिषद्‌ तथा गीता पर भाष्य लिखा भ्रौर शुद्धाद्रंत का प्रतिपादन किया । कृष्ण को पुरुषोत्तम मानकर उसे पूणं ब्रह्म के रूप में प्रतिष्ठित किया । बल्लभाचायं का मत जिसे दशन के क्षेत्र में शुदधादरैत कहते है, भक्ति के




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