रास और रासान्वयी काव्य | Raas Aur Rasanvayi Kavya

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Raas Aur Rasanvayi Kavya by डॉ. दशरथ ओझा - Dr. Dashrath Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अस्तावना জানলা महते सौमगाय; ( ऋग्वेद ) हिंदी भाषा का सोभाग्य दिन प्रतिदिन बृद्धि को प्राप्त हो रह्य है। प्रत्येक नए अ्रनुसंघान से यह तथ्य प्रत्यक्ष होता जाता है। हिंदी के प्राचीन वाडः- मय के नए नए क्षेत्र दृश्टिपय में आ रहे हैं | वस्तुतः भारत की प्राचीन संस्कृति फी धारा का महनीय जलप्रवाह हिंदी के पूव और श्रमिनव साहित्य को प्राप्त हुआ है | हिंदी फी महती शक्ति सबके अभ्युदय और कल्याण की भावना से उत्यित हुई है। उसकी किसी के साथ कुंठा नहीं है। सबके प्रति संप्रीति ओर समन्वय फी उमंग ही हिंदी की प्रेरणा है । उसका जो सोमाग्य बढ़ रहा है वह राष्ट्र की अरथंशक्ति और वाक्शक्ति का ही संवर्धन है। इस यज्ञ का सुकृत फल समष्टि का कल्याण और आनंद है । हिंदी के वर्धभान सौमाग्य का एक श्लाघनीय उदाहरण प्रस्तुत ग्रंथ है । (रास और रासान्वयीकाव्य? शीर्षक से श्री दशरथ जी ओम ने जो अद्भुत्‌ सामग्री प्रस्तुत की है, वह भाषा, भाव, धर, दशन ओर काव्य रूप की दृष्टि से प्राचीन हिंदी का उसी प्रकार अभिन्न अंग है जिस प्रकार अपम्रैश और अवहृद्ट का मह्दान्‌ साहित्य हिंदी की परिधि का अंतवर्ती है । यह उस युग की देन है जब भाषाओं में क्षेत्रसीमाओं का संकुचित बेंठवारा नहीं हुआ था, जब सांस्कृतिक और धार्मिक मेघजल सब क्षेत्रों में निर्बाध बिचरते थे ओर अपने शीतल प्रव्षण से लोकमानस को तृप्त करते थे, एवं जब जन-जन में पाथक्य की श्रपेज्ञा पारस्परिक ऐक्य का विलास था। प्राचीन हिंदी, प्राचीन राजस्थानी, या प्राचीन गुजराती इन तीनों के भाषाभेद, भावभेद, रसमेद एक दूसरे में अंतर्लोन थे । इस सामग्री का श्रतुशोलन ओर उद्धायन उपी भाव से होना उचित है । श्री दशरथ जो ओमा शोधमार्ग के निष्णात यात्री हैं। अपने विख्यात ग्रंथ “हिंदी नाटक-उद्धव और विकास” में उन्होंने मोलिक सामग्री का संकलन करके यह सिद्ध किया है कि हिंदी नाटकों की प्राचीन परंपरा तेरहवीं श॒ती तक जाती है जिसके प्रकट प्रमाणु इस समय मी उपलब्ध हैं और वे




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