विजय मिली विश्राम न समझो | Vijay Mili Vishram NA Samjho
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
202
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)11
भारत के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी श्यामजी कष्ण वम् वर्मा, सरदारसिह राणा ओर व से
हई । इस भट से उनका स्वरदे्-भावना भौर भो विकसित हो उटी । । वे लन्दन के 'हाइड
पार्क में भाषण देने लगीं । अंग्रेजों के ही देश में अंग्रेजों द्वारा भारत में किए गए जुल्मों की
कहानी दिन-दहाड़े सुनाई जाने लगीं। भारतीय नारी की भोजस्वी वाणी सुनकर अंग्रेज-
जनता स्तव्ध रह गई। वे अमरीका भी गईं। वहां वल्डॉफ् एस्ट्रोरिया होटल में भापण
देते हुए उन्होंने कहा--मेरे देश के श्रेष्ठ-जनों को अपराधियों की भांति देशनिकाले
अथवा जेलों की सजा दी जाती है। वहां उन्हें कोड़ों से यातनापूर्वक इतना पीटा जाता
है कि उन्हें अस्पताल भेजना पड़ता है। हम शान्ति प्रेमी है, हम रवत-भरी क्रान्ति करना
नहीं चाहते । परन्तु अपने देशवासियों को अपने अधिकार और पराधीनता की वेड़ियों को
उतार-फेंकने की शिक्षा देना चाहते हैं ।
लन्दन वापिस लौटकर 1908 को नवम्बर मे उन्होंने एक अन्तिम भाषण दिया--
“तीन वर्ष पूर्व हिसक आन्दोलन की बातें कहना मुझे रुचिकर न था, परन्तु लिबरल्स की
निर्देय, थोथी और धूत्तंता भरी बातों से मेरी वह भावना नष्ट हो गई है। हम हिंसा का
पथ क्यों न चुनें जबकि हमारे शत्रु हमें उस मार्ग की ओर धवका देते हैं। यदि हम शक्ति
प्रयोग करते हैं तो इसलिए कि हमें-शक्ति बरतने को वाध्य किया जाता है। जबकि रूसी
सोफी परवोस्की और कामरेड ऐसे ही कार्य के लिए ऐसा ही मार्ग अपनाने पर भी वहादुर
हैं । यदि रूसी हिसा की प्रशंसा की जाती है तो भारतीय द्विसा- की. प्रशंसा-व्यों नहीं की
जाती ? निरंकुश शासन निरंकुश है, ০৯ उत्पीडन है, चाहे वह कहीं भी किया আহা
सफलता उस काये का न्याय पक्ष लेती है। विदेशी शासन के विपरीत सफल विद्रोह देश-
' भक्ति है। मित्रो, हमें सारी हीनता, सन्देश और भय निकाल देने चाहिए। अंग्रेजों की
दृष्टि में उनके इस कार्य से अंग्रेज अधिकारियों ने उन्हें इंग्लैंड छोड़ने का आदेश दिया ।
परन्तु भिखाई जी कामा भयभीत. होनेवाली महिला न थीं । एक रात वे चुपके से इंगलिश
चैनल पार कर फ्रांस पहुंच गईं, जहां श्यामजी वर्मा, सरदारसिह राणा तथा भन्यभा रतीय
क्रान्तिकारी पटले ही आ गएये।
अव पेरिस उनका मित्रास केन्द्र वन गया! भारत के अनेक प्रवासी क्रान्तिकारी
उनके पास आने लगे, उनका घर क्रान्ति की कायंगतियों का केन वन गया । क्रान्ति
विचारों के पचं हाथ से लिखकर वितरित किए जाने लगे । फ्रांस और रूसकें भारत
हितपी क्रांतिकारियों ने उनकी मदद की । भिखाई जी कामा के ओजस्वी भाषण अंग्रेजों
के अत्याचारों का बखान करने लगे ।
अंग्रेज सरकार इससे चिंतित हो उठी और उसने फ्रांस सरकार से भिखाई जी
कामा को इंग्लैंड भेजने की प्रार्थना की, परन्तु फ्रांस सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया ।
ঘন अंग्रेज सरकार ने उनके भारत प्रवेश पर रोक लगा दी | उसने उनकी भारत में
सम्पत्ति भी जब्त कर ली ।
श्रीमती कामा ने पेरिस से.“ যা पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया जव
भारत में 1910 का प्रेस एक्ट लगा तो वन्देमातरम्' ने इसे सरकार की पराजय और
भारतीय क्रान्ति की विजय की संज्ञा दी। कामा ने पत्र लिखा--ठीक निशाने पर शूट
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