साधुमार्ग की पावन सरिता (भाग-1) | Sadhumarg ki paavan sarita (Bhaag-1)

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : साधुमार्ग की पावन सरिता (भाग-1) - Sadhumarg ki paavan sarita (Bhaag-1)

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मुनि धर्मेश - Muni Dharmesh

Add Infomation AboutMuni Dharmesh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
माधव और आनन्द गिरि ने अपने शकर दिग्विजय ग्रन्थ मे, सदानद ने अपने शकर विजय सार मे कई जगह शकराचार्य का जैन विद्वानो के साथ शास्त्रार्थ होना स्वीकार किया है| स्वय शकराचार्य के वेदात सूत्र भाष्य के द्वितीय अध्याय के ३३ से ३६ तक के पदो मे जेनधर्म का उल्लेख करते हुए जैनधर्म की प्राचीनता स्वीकार की है| शिवपुराण मे भी जेन मुनि का उल्लेख किया गया है- हस्ते पात्र दघानाश्च, तुंड वस्त्रस्य धारका । मलिनान्यवे वासासि, धारयन्तोऽल्प भाषिण || -शिवपुराण, ज्ञान सहिता अ २१ श्लोक, २४ हाथ मे पात्र धारण करने वाले, मुख पर मुख वस्त्रिका धारण करने वाले अर्थात्‌ बाधने वाले एव मेले वस्त्रो को शरीर पर धारण करने वाले ओर बहुत थोडे बोलने वाले जेन मुनि होते है। बौद्ध धर्म से साघुमार्गी जैनघर्म कौ प्राचीनता इन प्रमाणो से वैदिक सनातन घर्म से साधुमार्गी जेनधर्म की प्राचीनता स्वत सिद्ध हो जाती है। बौद्धधर्म की प्राचीनता की तो गुजाईश ही कहा है ? जिसका उद्भव ही साघुमार्मी जेनधर्म के रष्वे तीर्थकर महावीर के समकालमे ही हुआं फिर भी न मालूम किस भ्रम मे पडकर लेथव्रिज, एेलफिस्टन बेवर, वार्थ आदि विद्वानो ने जैन धर्म की उत्पति बोद्ध धर्म से मान ली। यदि वे हिन्दू धर्मक ग्रथो का ओर बोद्ध धर्म के ग्रथो का सरसरा अध्ययन भी करते तो उनका यह भ्रम निवृत्त हो जाता ओर उनको मानना पडता कि जेनधर्म बौद्ध धर्म की शाखा नहीं हे । बोद्ध धर्म की उत्पति भी एक जैन साधु से हुई शी जिसका उल्लेख दर्शन सार नामक ग्रथ, जिसकी रचना देवचद आचार्य ने विक्रम सवत ९९० मे (ई सन्‌ ९३३ मे) उज्जैन मे की, उसमे लिखा गया है कि पार्वनाथ परपरा के पिहिताश्रव नामक जैन साधु के एक विद्वान शिष्य बुद्ध कीर्तिं था, उसने बोद्ध धर्म की स्थापना की थी । बुद्ध कीर्तिं पलाश नगर मे सरयू नदी के किनारे पर तपस्या कर रहा था उस समय उसने एक मरी हुई मछली को पानी पर तेरते हुए देखा- इसके खाने मे हिंसा नहीं लग सकती क्योकि जीव रहित है । इस विचार धारा को पुष्ट कर गेरुआ वस्त्र धारण करके नये धर्म का प्रचार किया जो बुद्धकीर्ति के नाम पर बौद्ध धर्म कहलाया | बोद्ध ग्रथो मे भी जेसे अगुत्तर निकाय के ३ अध्याय की ७४वे श्लोक मे जेनो के कर्म सिद्धात का वर्णन, “महावग्ग के ६दे अध्याय मे भगवान महावीर के श्रमणोपासक सिह के साथ बुद्ध देव की भेट का उल्लेख, मज्झिम निकाय मे महावीर के उपाली श्रमणोपासक से बुद्ध देव के शास्त्रार्थ का वर्णन व अगुत्तर निकाय मे जैन श्रावको व उनके आचार विचार का विस्तृत वर्णन ऐसे ही उनके ग्रथो मे मखली पुत्र गोशालक का, सुधर्माचार्य के गोत्र का, महावीर के निर्वाण स्थान का उल्लेख मिलता हे, 15




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now