ग्रन्थ परीक्षा भाग १ | Granth-pariksha Volume-1
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उमसास्थामि- क्रावका चार १
२--ज्ञानं पूजां कुल जाति वरमृद्धि तपो वपुः ।
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अष्टाचाधित्यमानित्वै स्पचमाहुगतस्मयाः ५ २५ ॥
--रत्नकरंड श्रा०
ज्ञानं पूजां कटं जाति वद्टमद्धं तपो वपुः।
अष्ठावाधित्यमानित्वं गतद्पा मदं विदुः + ८५ ॥
--उमा० श्राण
३--दर्शनाश्वरणाद्वापिं चलतां धर्मवत्सलः ।
भत्यवस्थापनं प्राक्तेः स्थितीकरणसुच्यते ॥ १६ ॥
-रत्नकरण्ड० श्रा
दर्शनज्ञानचारित्रतयाद्धएस्य जाल्मिनः 1
प्रत्यवस्थापनं तज्ञाः स्थितीकरणमृचिरे ॥ ५८॥
--उमा० সাও
४--ख्वयूथ्यान्धरतिसक्लावसनाथापेतकैतवा । *
प्रतिपत्तियथायोग्यं वात्सल्यमभिरूप्यते ॥ १७॥
--रत्नकरण्ड ० श्रा०
* साधूनां साधुबूत्तीनां सागाराणां सधर्मिणाम् ।
प्रतिपत्तियंथायोग्यं तश्नीचोत्सल्यमुच्चते ॥ ६३ ॥
नैः রং भ --उमा० श्रा०
५--सम्यग्न्नानं कार्यं सम्वक्त्वं कारणं वदन्ति जिनाः ।
ज्ञानाराधनमिष्ठं सम्यक्त्वानंतरं तस्मात् ॥ ३३ ॥
क
--पुरुषा्थसिद्धन्ु | से स पायः
# यह पृर्वाधे “स्वथूथ्यान्प्रति ” इस इतनेही पदका अर्थ मादम होता है।'
शेप 'सद्भावसनाथा,.” इत्यादि गौरवान्वित पदका इसमें भाव भी नहीं भाया
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