धर्मविलास | Dharmvilas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
270
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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पंचपरमेशेकी नमस्कार, छणव।
रथम नमू अरत, जाहि इदादिक ध्यावत ।
বু सिद्ध महंत, जासु समिरत सुख पावत ॥
आचारज वदामि, सकर श्रुत ज्ञान प्रकासत ।
वदत हा उवश्नाय, जास वदत अथ मासत ॥
जे साधु सकल नरढोकमें, नमत तास संकट हरन।
यह परम मंत्र नित रति जपो, विधन उठटि मंगठ करन ॥
सवुद्धिक्तनिनलुति, करता ।
राग रंगति नहीं दोप संगति नहीं,
मोह ब्यापे न विजकछा जागी।
धातिया खे गवौ जान प्रगट भयौ,
यकौ जानि प्रदं लागी ॥
सकर यगुण गये, सक गुणनिधि भये
सकर तन जस सुकुल रीति पागी ।
कृपा क्रि कंतकी मोख पद दीजिये,
कहत हे सुबुधि निनाय छागी ॥ २२॥
কতো হু!
कहत है স্তনুতি জিললাঘ নিলবা সুদী,
कंत तो मूह समुझ न क्यों ही
धोर संसारे देत जे विषय द
तिन्हें भोगत ই গুন स्यां ही ॥
जाइगो नके तव विषय फल जानसी,
तहां पिछतात सिर धुन या ही ।
ब
१ शनत पांच, दर्शनावरण नव, मोहनीय अदरदस, भंतराय पाम्}
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