अन्तर यात्रा | Antar Yatra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मेरी दृष्टि में मुनि श्री गणेशमल जी विद्या-वयोवृद्ध जेन साधु है। पूरा जीवन तप-साधना की मात्म-कथा है 1 मन-वचन-कर्म से वे आदर्श सन्‍्यासी है । 'अणब्रत आन्दोलन के सूत्रधार, परम तपस्ची युग्रद्वप्टा आभाचाये श्री तुलसी के सान्निध्य से मुनि श्री ने निरतर अध्ययन, चितन, मनन से जो अनुपम ज्ञान-कोप प्राप्त किया, उसका दिव्य-दर्शन प्रस्तुत कृति में किया जा मकता है 1 मुनि श्री जैन धर्म के गहन सिद्धान्तों और व्यावहारिक जीवन-दर्शन के मर्मज्ञ विद्वान है । उनका गभीर तत्त्व ज्ञान “अन्तर्याचा का सवल है! सपने लवे अनुमव तथा विशद जास्त्रीय अध्ययन से अन्तहं षिट प्राप्त की है, उसे सार्वजनिक कल्याण के लिए सुवोध भाषा में अभिव्यक्त भी किया है । सपूर्ण रचना दोहा छद में है। दोहा हिन्दी का और इससे पूर्व अपभ्र श मापा का अत्यन्त लोकप्रिय छन्द रहा है । लघु तथा सरल होते हुए भी रचना-प्रक्रिया तथा भावानिव्यक्ति की दृष्टि से में इसे बहुत कठिन छंद समज्ता हूँ । थोड़े शब्दों मे अपने अभिप्राय को पूर्णतया स्पष्ट करने की कला, सागर को गागर' में बन्द करने का अद्मुत कौशल निङ्वय ही सतत साधना की अपेक्षा रखता हे | हिन्दी मे कविवर विहारी और कवीर को छोड अन्य किसी कवि को अधिक सफलता नही मिल सकी । नाविक के तीर जैसी चोट हर दोहे मे और हर कवि मे सभव भी नही । मुनि श्री गणेशमल जी का दोहा छुद पर एकाधिकार नि सन्देह प्रणमाजनक है । यद्यपि इन्होंने साहित्यिक रमपूर्ण दोहे तो नही लिखे, तथापि नीति-घर्म सबंधी इनके दोहो मे छद की गरिमा और रचना शैली का सौन्दर्य स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इनके दोहो मे समास-शक्ति का गुण विशेष रूप से उल्लेखनीय है विपय की गभीरता तथा कही-कही पर सैद्धातिक तत्व-ज्ञान की चर्चा के कारण ग्ब्द-चयन क्लिष्ट हो गया है, जो स्वाभाविक है ।




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