हिंदी छंदप्रकाश | Hindi Chhand Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प् प्रतिच्छन्द का नाम दिया है । इस न्यूनाघिक्य का समाधान इस प्रकार से किया जाता है--छन्द तो लय के श्रनुसार चलता हे श्रौर सहितापाठ मे प्रयुक्त शब्द व्याकरण की दृष्टि से शुद्धरूप मे दिये गये है । इसके श्रनुसार उक्त गायत्री मत्र के वरेण्यमू जो व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध रूप है को वरेरियम जो छन्द की दृष्टि से शुद्ध हैं करके पढने का विधान है । इसी प्रकार ७ १९ २ में इन्द्र शब्द को इन्दर करेके पढने की व्यवस्था की गई है । यह बात पचासो सचत्रो में है । कही ज्येष्ठ को ज्ययिष्ठ और सख्याय को सखिस्माय आर कही स्याम को सिभ्राम और व्युषा को वि उषा करके पढने का विधान है । इस प्रकार वैदिक छन्द किन्ही कडे तियमो में बँधे हुए नही है । इनका प्रत्येक नियम प्राय सापवाद है। शायद इसीलिए पीछे के वैयाकरणो ने स्थान-स्थान पर छान्दस प्रयोग का अर्थ ही नियम- शैथिल्य किया है । जहा कही नियम मे दिधिलता मिली उसे छान्दस कहकर निपटा दिया है 1 छन्दसि सर्वे विधयों विकल्पन्ते उनकी श्राम परिभाषा हैं । परन्तु ऐसा समकना भुल है । प्रत्येक विज्ञान के झ्रावि- ष्करणकाल मे इस प्रकार की नियम-निर्मक्ति स्वाभाविक सौर भ्रपेक्षित भी है । लक्षण झौर नियम तो वस्तुत लक्ष्य को देखकर बहुत पीछे बनते है । में नियमशैथिल्य वस्तुत छन्दो के निर्माण में नये-नये प्रयोगों की दिशा मे की जाने वाली सतत चेष्टाओ के स्वाभाविक परिणाम हैं । इन्ही तथाकथित शझ्रपवादो की तह मे पीछे के अ्रनेक छर्दो के बीज विद्यमान है । / पीछे के भ्राचार्यों ने यही से प्रतीक लेकर श्रनेक नये छन्द गढे हे श्रौर वेद के गायत्री भ्रादि छन्द क्रमदाः विकसित होकर पीछे सस्कृत मे केवल छन्द न रह कर छन्दोजातिया बन गये हे जिनसे प्रस्तार की रीति से सैकडो नूतन छन्दों की सृष्टि हुई है । इसी नियम- दोथिल्य मे वस्तुत साधारण विकास के मूलतत्व सन्निहित है । नियमों का उल्लघन नि सन्देह प्रगति का प्रधान लक्षण है प्ौर नियमों का




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