जिन - सिद्धान्त | Jin - Siddhant

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jin - Siddhant by ब्रम्चारी मूलशंकर देसाई - Bramchari Moolshankar Desai

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ब्रम्चारी मूलशंकर देसाई - Bramchari Moolshankar Desai

Add Infomation AboutBramchari Moolshankar Desai

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ইটনা जिन सिद्धान्त ] 9 ६ चीज >> লা সি রঃ ০১৬ ५४५९१ प्रश्ष--वेजस और कामोण शरीरके ই? . उत्तर--सब संसारी जीवों के तैजस ओर कामाश्‌ शरीर होते हैं । ` प्रश्च--धर्मास्तिकाय द्रव्य किसको कहते है ? उत्तर-जिसमें गति हेतुत्व नामका प्रधान गुण हो उसे धर्मास्तिकाय द्रव्य कहते हैं | जो लोकाकाश के बरा- घर असंख्यात ग्रदेशी, निष्क्रिय ओर निष्कम्प एक अखंड द्रव्य है । जो जीव तथा पुद्गल के गमन करने मे उदा- सीन निमित्त हे | जेसे-मछली के लिये जल । प्रक्ष--अधमोस्तिकाय द्रव्य क्रिसको कहते हैं ! उत्तर--जिसमें स्थिति हेतुत्व नाम का प्रधान गुण हो, जो लोकाकाश के बराबर असंख्यात प्रदेशी, निष्क्रिय तथा नि््क॑प एक अखण्ड द्रव्य हे, जो जीवै तथा पुद्गल फे स्थिति रूप परिणमन फरने मे उदासीन निमित्त है । जेसे धूप के दिनों में थके हुये झुसाफिर के लिये पेड़ की छाया । प्रश्ष--आकाश द्रव्य किसको कहते दै ! उत्तर--जिसमें अवगाहनत्व नाम का प्रधान गुण हो, जो अनन्त प्रदेशी निष्किय, निष्कंप एक श्रखण्ड द्रव्य है, जो सब द्रब्यों को स्थान देने के लिये उदासीन 8 ৮) হতিলাঁত লালা प्रत्लाघान




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now