हिन्दी विश्व भारती | Hindi Vishva - Bharati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आकाश की बातें फ 1 ৯ ৯২৭ कु ৫ ~ ए 4 य य नाभा 452945৮255০ 052০242455555555525-4550425555355555555555555 80 ০২০০ मनन कम पक «हम वलन्‍०नमअ कक लगातार मिलते रहे | आज लगभग पोने दो हज़ार अवांतर ग्रहों का पता हमें है ओर दो-चार नवीन अवांतर ग्रह हमें प्रति वर्ष ही मिल जाते हैं | इधर अधिक ग्रहो के मिलने का एक कारण यह है कि फोयोग्राफी से हम सहायता ले, सकते हैं। यदि कोई अवांतर ग्रह इतने मंद प्रकाश का हों कि वह हसको बडे दूरदशंकमे भीन दिखलाई पडे तो घटो धूर्ते रहने पर भी वह हमको नहीं दिखलाई पडेगा, परंतु यदि हम उसी ग्रह का फोे तेज़ फोणेग्राफिक प्लेट पर ले ओर दो-चार घंटे का | प्रकाश-दर्शन ( एक्सपोज़्हर ) ` दे तो उस मद प्रकाश के दो-चार घंटे का सम्मिलित प्रभाव अवश्य प्लेट मे इतना परिवत्तन कर देगा कि ग्रह का चित्र खिच जाय | जर्मन-ज्योतिषी मैक्स बोल्पा ने पहले-पदल इस वरात से पूरा ध लाम उठाया | वह पहले से अनुमान कर हु लेता था कि अवांतर ग्रह किधर श्र क्रिस वेग से चलता होगा; और वह अपने दूर- दशक को ठीक ऐसी गति से चलाता था कि अज्ञात भह का चित्र विदु-सरीखा उतरे | तारो के हिसाब से अह चलता रहता है, इसलिए, उपरोक्त रीति से दूरबीन चलाकर घंटो का प्रकाश-दर्शन देने पर तारो के चित्र तो विदु-सरीखे न उतरते थे--वे खिचकर कुछ लम्बे होते जाते थे--परतु ग्रह का कुल प्रकाश घंटो तक प्लेट के केवल एक ही विदु पर्‌ पडता था | इसलिए इस उपाय से मद-से-मंद्‌ ग्रह का फोये मी खिच आता था| इसीलिए हमें अनेक ऐसे अवांतर ग्रहो का पता है जो इतने मंद प्रकाश के हें कि वे वड़े दूरदश॑को मे भी नहीं दिखलाई पडते दहै | अवातर ग्रह हमे तारे के समान ही दिखलाई पडते है, इसलिए उनकी पहचान केवल उनकी कक्षाओं से ही होती === हु है। इनका नामकरण-संस्कार भी बडा विचित्र-हैं। जब किसी नये ग्रह का पता चलता है ओर कक्षा की गणना करने पर पक्का हो जाता है कि ग्रह वस्तुतः कोई नवीन मरह है तब बलिन (जर्मनी) के रेख़ेन-इंस्टीट्यूट (२२९८-0) का श्रध्यत्त इस ग्रह केलिए एक स्थायी नंबर डाल देता है। वहाँ से नंबर पड जाने के बाद श्राविष्कारक को इसका नाम रख देने का अवसर दिया जाता है। पहले इनके नाम देवी-देवता के नामो पर रक्खे जाते थे, परन्तु देवी-देवताओ की सूची समास हो जाने के बाद शहर, मित्र, जहाज़, यहाँ तक कि पालतू कुत्ते-बिल्ली और दिलपसंद मिठाइयो के नाम तक के अनुसार अवां तर ग्रहो के नाम হক गए हैं । व - व्यास आदि केवल दो-चार बडे श्रवांतर ग्रहों के ही व्यास नापे जा सके है। अन्य अवांतर ২২ ग्रहो के व्यासो का अनुमान उनके प्रकाश की मात्रा से किया गया है | सबसे बडा अवांतर ग्रह सीरिस है,जिसका आ विष्कार सर्वप्रथम हुआ था । इसका व्यास लगभग ४८० मील है । कुल पंद्रह-सोलह ही अवांतर ग्रह १०० मील से अधिक व्यास के होगे | अधिकांश २० मील व्यास के एरॉस नामक प्रसिद्ध श्रवांतर यह बड़ा हो विचित्र आका- शीय पिण्ड है। उसकी चमक घटती- बढती रहती है। इसके कारण के संबध में चार धार- ` णाप है। उदु कहते . हैं, इस पर कुछ ৭ অভ ই; লিজ ५ , प्रकाश बदलता रहता हे । दूसरे इसे अंडाकार यथा अनियसित आकार का मानते हैं। अन्य की धारणा हे कि ये दो पिण्ड हैं, जो कभी साथ-साथ और कभी-कभी एक-दूसरे की आइ में आ जाते हैं, जिससे प्रकाश घट-बढ़ जाता है ।




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