छहढाला ए. सी. 509 | Chhah Dhala Ac 509
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
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परमानन्द जैन - Parmanand Jain
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ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद - Brahmachari Shital Prasad
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दूसरी ढाल १६
मोक्षमा्गमें जीवादि सात तस््तोंका श्रद्धान अपने मतल्बका है,
चनका स्वरूप ओऔरका ओर-उलटा श्रद्धान कर लेना सो मिथ्यावशेन
है। तथा आत्माका स्ररूप जानना देखना है। यह आत्मा कोई जड़
। मूर्ति नहीं है, किन्तु चेतन्य मूति है । इसकी उपमा (भिमाल) नहीं दी
जा सकती)
जीवतत्वका विपरात-श्रद्धानः-
पुद्गल नम धमं श्रमं काल, इनत न्यारी है जीव चाल ।
ताको न जान विपरीत मान,-करि करें देहमें निज पिछान॥ ३ ॥
म्यारी=(बि०) जुटी, अ्रलग । चाल=(स०) स्वभाव |
विक्रोत(स०) उलटा |
इस आत्माका स्वभाव पुद्गल, आकाशः, धमे अधम श्रौर काल--
इन पांचों द्रव्योसे (जिनका स्वरूप अगे करगे) जुदा है। अज्ञानी
जीव आत्माका ऐसा स्वरूप न जान कर इससे डउलटा मानकर अपनी
देहको ही आत्मा समम्तता है | यह मिथ्याद्शन की महिमा है ।
मिथ्याटष्टिका शरीरआदि पर पदाथके प्रतिविचार:--
मैं सुखी दुखी में रंक राव, सेरे धन ग्रह गोधन प्रभाव ।
मेरे सुत तिय में सबल दीन, बेरूप सुभग मूरख प्रवीन ॥ ४ ॥
বঙ্গ) गरीत्र। रावनसं०) হালা | मोधनन्(सं०) गाय, मैंखादि।
ब्माबन्(सं०) बढ़प्यन । तियन(सं०) स्त्री। सुममर््नवि०) छुन्दर ।
मिथ्यादशेनके कारणसे यह जीव ऐसा माना करता है किमे
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