छहढाला ए. सी. 509 | Chhah Dhala Ac 509

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परमानन्द जैन - Parmanand Jain

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ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद - Brahmachari Shital Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरी ढाल १६ मोक्षमा्गमें जीवादि सात तस्‍्तोंका श्रद्धान अपने मतल्बका है, चनका स्वरूप ओऔरका ओर-उलटा श्रद्धान कर लेना सो मिथ्यावशेन है। तथा आत्माका स्ररूप जानना देखना है। यह आत्मा कोई जड़ । मूर्ति नहीं है, किन्तु चेतन्य मूति है । इसकी उपमा (भिमाल) नहीं दी जा सकती) जीवतत्वका विपरात-श्रद्धानः- पुद्गल नम धमं श्रमं काल, इनत न्यारी है जीव चाल । ताको न जान विपरीत मान,-करि करें देहमें निज पिछान॥ ३ ॥ म्यारी=(बि०) जुटी, अ्रलग । चाल=(स०) स्वभाव | विक्रोत(स०) उलटा | इस आत्माका स्वभाव पुद्‌गल, आकाशः, धमे अधम श्रौर काल-- इन पांचों द्रव्योसे (जिनका स्वरूप अगे करगे) जुदा है। अज्ञानी जीव आत्माका ऐसा स्वरूप न जान कर इससे डउलटा मानकर अपनी देहको ही आत्मा समम्तता है | यह मिथ्याद्शन की महिमा है । मिथ्याटष्टिका शरीरआदि पर पदाथके प्रतिविचार:-- मैं सुखी दुखी में रंक राव, सेरे धन ग्रह गोधन प्रभाव । मेरे सुत तिय में सबल दीन, बेरूप सुभग मूरख प्रवीन ॥ ४ ॥ বঙ্গ) गरीत्र। रावनसं०) হালা | मोधनन्(सं०) गाय, मैंखादि। ब्माबन्(सं०) बढ़प्यन । तियन(सं०) स्त्री। सुममर््नवि०) छुन्दर । मिथ्यादशेनके कारणसे यह जीव ऐसा माना करता है किमे




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