भूले - भटके | Bhule - Bhatake
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भले-नठके £
रमा फो तरद जला होगा, आज एक राख के हेर के समान धा--मोदा,
भारी, पोपला मुख, पान और तम्बाक से रंगे दात, मे हु पर सफेद
सफेंद्र चकत्थे, जोड़ों में दर्द--वह यीवन की समाधि लगती थी |
समा बुक चुकी थी , परवाने भी ने झाते थे। जान-पहिचान काला
कभी मजाक-मखोल कर जाता और कांचता जोड़ों को मलती हुई, पान
चब्ाती हुई, कियाडू के सहारे घंटों वेठी रहती । कुछ सोचती, बाद
करती । कभी कभी नलिनी को संगीत सिखाती। इस तरह समय
काटने का प्रयत्न करती ।
रात भर दिया जलता । रह-रहकर कांचना को लगता, झँसे किसी
ने किवाड़ खटखटाया हो । वह उठकर किवाड खोलने जाती, किसी को
नपा ओआहे भरती | आठ-नी बजे के करीव उठती। प्ररानी श्रादत्त
সন भी बरबस जारी धी निनी उसकी ध्य লনলী के बारे
में वेखनर थी ।
उम्र ढल गई थीं। बीमारी में वबहुत-कुछ रुपया समाप्त हो चुका
जिन दितों कमाई अधिक थी, खर्च भी ज्यादा था। दसियों
रिश्तेदार, इधर-उधर के लोग हृसेशा घर किसी-स-क्रिसी बहाने पढ़े
रहते । बुजगों की जमीन-जायदाद माँ के जमाने में ही समाप्त हो
चुकी थी ।
अब हालत यह थी कि वह झपना पेणा निभा नहीं पाती ही |
आय न के वरावर थीं, इसलिये वह दूध बेचा करती । रोजमर्रा का रच
निकल जाता था। जने-तंसे गुजारा कर रही थी ।
सव कमी म्पये कौ मस्न जरूरत होती तो वह नायदू जी क्न
खबर भिजवाती । वहत मिन्नत के वाद परचिदस न्ये মিল আজান ।
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