श्वेताम्बर तेरह पंथ | Swetamber Terah Panth

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Swetamber Terah Panth by शंकर प्रसाद दीक्षित - Shankar Prasad Dixit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(৩) शक्षा ঈী ভিহ अनेकों स्थन्लर प्राणियों की हिंसा क्यों की जावे ? जैप-किसी शे मोजन दिया या पानी पिलाया, तवर रक्षातो एक कमी की हुई परन्तु: इस काये मे असंस्य और अनन्त. स्थावर अपरो का संहार हो जाता है, बह पाप उस जीव-रक्षा करनेवाले को होगा | इतना ही नहीं किन्तु जो जीव बचा है; उसके जीवन मर खाने पीने अथवा अन्य कामों में जो : हिंसा, त्रस-स्थावरः जीओं की होगी, बह हिंसा भी उसी ॐ लगेगी, जिसने उसको, मरने से बूचाया है । পভ মা दूसरा सिद्धान्त यह है कि-- जो जीव मरता है अंयवा कष्ट प्‌ रहा है. वह अपने पूर्व संचित' कर्मों का फल भोग रहा दै जूसको मरने से बचाना अथवा उसको सह्दायता करके कष्टममुक्त करना, अपने खुद पर का वह कम-ऋण चुकाने से, उसको वंचित , रखना है, जिसे वह मरने या कष्ट सहने के रूप मे भोगकर चुका रहा था। तासरी मान्यता यह है कि--साधु के सिवाय , संसार के समस्त प्राणी कुपात्र हैं | कुपात्र का बचाना, कुपात्र को दान देना कुपात्र की सेबा-सुश्रपा करना, सत्र पाप है |. . .. . इन्ही दलीछों ( मान्यताओं ) के आधार पर तेरह-पन्यी छोगे दया और दान को पाप बताते हैं; और इन्हीं सिद्धान्तों की না के लिये वे कहते हैं ' कि व. 7, ৮ £




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