तमसा | Tamsa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
310
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१३ |
बनता जो अत्तर्यामी
जिस ने यह जालः स्वा है |
अपने हा हा कार का परिचय देते हुए रागे चल कर कहा?
जी कहते हैः--
अनुभव ই जिन्हें न कोई
दुखियों के दुख दारुण का,
सम्भव है, समझा न पाये
यैह हाहाकार करुण! का ।
किन्तु कर्णः जी को यह् हाहा कार ही तो हिन्दुस्तान की
दारुसं दीनतां का हाहाकार है । वास्तविकता के दिगुशन से दुर
भागने वाले चोर शगार फे मन-मोदक उड़ाने बाले कतियो से बह
कहते है--
सल चुका टर ~ ज्वाला मे
লন - शिख সুমা कमी का,
सावन फे, श्रे कवि !. क्यों
गाते रस-रांग तभी का ?
करणा, जी केवल कृषकों ओर अमकारों के हूटे-फूटे धरों ओर
भोपड़ों में ही नहीं गए, उन्हों ने जहाँ भी ऋन््दन सुना बहीं पहुँचे,
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