विनोबा के विचार भाग - १ | Vinoba Ke Vichar (bhag 1 )
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
201
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्ट विनोबा के विचार
क्रृष्ण-भक्ति का रोग
“दुनिया पैदा करें' ब्रह्माजी की यह इच्छा हुई। इसके अनुसार कारवार
शुरू होनेवाला ही था कि कौन जाने कैसे उनके मन में आया कि 'अपने काम-
मे भखा-बुरा वतानेवाला कोई रदे, तो वडा मजा रहेगा ॥' इसलिए आरम
भे उन्होने एक तेज तर्यार टीकाकार गढा, भौर उके यह अस्तियार दिया কি
आगे से में जो कुछ गढ, गा, उसकी जाच का काम तुम्हारे जिम्मे रहा। इतनी
तैयारी के वाद श्रह्माजी ने अपना वारखाना चालू क्या। प्रह्माजी एक-एय
चीज बनाते जाते और टीकाकार उसबी/चूक दिखाकर अपनी उपयोगिता
सिद्ध करता जाता। टीकाकार वी जाच वे सामने कोई चीज बे-ऐव ठहर ही
न पाती । “हाथी ऊपर नही देख पाता, ऊट ऊपर ही देखता है। मदद मे चपलता
नहीं है, बदर अत्यत चपल है।” थो दीकाकार ने अपनी टीका वे तीर छोडने
शुरू क्ये। ब्रह्माजी वी अकक्ल गुम हो गई | फिर भी उन्होने एवं आखिरी
बाशिश कर देखने वी ठानी और अपनी सारी वारीगरी सर्च करके मनुष्य
गा । दीकाकार उत्ते वारीकी से निर्खने लगा ! अत में एफ चूक निकल ही
भाई। “इमबी छातीमे एक खिडवी होती चाहिए भी, जिससे इसके विचार सय
समझ पाते ।” द्रह्माजी बोले---तुझे रचा, यही मेरी एक चूक हुई, अब मैं
ভুল হাব্হসী ঈ हवाले करता हू ।”
यह एवं पुरानी कहानी वही पढ़ी थी । इसवे थारे में शका करने पी
सिर्ष एक हो जगह है। बह यह कि बहानी बे वर्णन वे अनुसार टीवाकार
दावरजी वे हवाले हुआ नही दीलता | शायद ब्रद्माजी को उसपर दया
भा गई हो, या शकरजी ने उसपर अपनी झवित न आजमाई हो । जो हो,
इतना भच हे दि याज उनकी जाति बहुत फैली हुई पाई जाती है। মুলাদী
मे जमाने में वर्वृत्य बारी न रह जाने पर ववयृत्व को मौका मिलता है।
नाम वी बात सत्म हुई कि बात वा ही बाग रहता है। और बोटरना ही है
User Reviews
No Reviews | Add Yours...