चाणक्यसूत्राणि | Chanakyasutrani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भ्रमिका १३ रदे, किन्तु मानवोचित्त मानसिहझ स्थितिमें रदनेके लिये समाजकद्याणको हो अपना वास्तविक कल्याण समझे । अपने ब्यक्तिगत छुद्दर छामोंको द्वी जीवनकझा लक्ष्प मान छेना मनुष्यका स्वविषयक घोर भ्ज्ञान है | ऐसे मानवने नहीं पहचाना कि मानवताका सम्बन्ध केवल भपने देदसे न द्वोकर सारे द्वी सपतरसे है | मानवसे साराहदीं सप्रार कुछ न कुछ शाशा करता है । मानव संसारभरके कल्याणमें भोग देनेकी क्षमता रखता है | भ्ापने देखा कि मानव बनना कितना उत्तर. दायित्व बद्दन करता है ! ब्यक्तिगत क्षुद्र छा्मोकों द्वी जीवनका लक्ष्य मान लेनेवाले मानवने भगवान्‌ ब्याप्तकी “न मानुषात्‌ श्रेष्ठतरं हि किंचित ' घोषणाका रहस्य नहीं समझा कि मानवीय सत्ता कितनी महामहिम सत्ता है भोर इस कारण उश्चका अपने, कुटुम्ब, ग्राम, समाज, देश तथा হুল संपघतारके सम्बन्धर्में कितना बड़ा उत्तरदायित्व है । भाजकरू भपने विषयमे घोर कषरेसें रद्दते हुए भी स्वमभिन्र संघारके विषयत परिचय प्राक्त कर लेना ज्ञानकी परिभाषा बन गई है परन्तु निश्चय द्वी यह ज्ञान नहीं है; किन्तु भपने शापको जान लेना द्वी ज्ञान है। यद्द वह ज्ञान हैं जिसका सानवके चरित्रनिर्माण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ना है । शिक्षाका काम विद्यार्थीोकों अपन स्वरूपसे या यों कद्द कि इस सृष्टिके विधाताके मानवदेद्द धारण कर छेनेके गुप्त उद्देश्यसे परिचित कराकर समाजमें भ्द्रोद्दी शुद्ध भावारघर्मकी स्थापना करके सामाजिक क्षान्तिको सुप्रतिष्ठित करना है । पेंटपूजा तो वें कछवे भी कर छेते हैं जिनके पास किसी यूनिव- सिटी कोद्र डगरी नहीं होती । शिक्षा वह्दी हे जिसके प्रभावसे मानवके मनमें पने पराय दोनाके भस्तिष्वके विषयसं किसी प्रकारका धशान्तिजनक, , उत्तेजक, भर्याचारी, स्वार्थी, मूढ विचार शेषन रद्‌ जये भोर शिक्षित मानव কব स्यागने तथा भशृतेष्य भपनानेको स्थितिस्ते भपना सुनिश्चित उद्धार करके सुदृह निष्ठा रखनेवारु! मानव बने । विन्त मरानवकी भनुभविक भान्तरिक जानचक्न उन्मीलित द्वोजानी चाहिये भोर उसे त्रिनेत्र महादेव




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