चन्द्रगुप्त मौर्य | Chandra Gupta Maurya

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शुकदेव बिहारी मिश्र - Shukdev Bihari Mishra

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श्यामबिहारी मिश्र - Shyambihari Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम परिच्छेद के चंद्रगुप्त और सुनेंदा प्रवेदा सम्राट चंद्रगुप्त मौयें का जन्म निष्कलंक क्षत्रिय-कुल में ईसा से ३४७ वर्ष पूर्व हुआ था । कहीं-कहीं इनकों मह पदयनंद से किसी मुरा- नाम्नी नाइन में उत्पन्न कहा गया हैं किंतु इन दिनों की खोजों से यह बात अदुद्ध प्रमाणित हो चुकी हूं । इसका ब्यौरा भूमिका में मिलेगा । स्वयं चोणंक्य नें इन्हें अभिजात उच्च कुलोत्पन्न कहा है । आप मयूरपोषक राजा के दौहित्र तथा पिप्पली-वन के मौर्य शासक के पुंत्र थे । महावंश में इनके पिता को हिमालय में राजा माना है । संभव है पिप्पली-कानन के इस नरेदा ने हिमालय में भी कोई छोटा-सा राज्य उपार्जित कर लिया हो । इनके पिता पाटछिपुत्र के नवर्नद-वंशीं सेग्राटू घननंद के सेनापति थे । यह धननंद सम्राट उग्रसेन के उत्तराधिकारी भाई थे। पुराणों के अनुसार महापदनंद इस वंश का संस्यापक नंदवंशी अंतिम सम्राट महानंदिन का किसी नाइन से उत्पन्न बेटा था । उघर जेन-प्रंथों तथा ग्रीक लेखक स्टैबो का कंथन है कि महानंदिन की रानी का एक नाई से संप्के हो गया जिससें महापदुम का जन्य हुआ तथा इसी कुचक् में महानंदिन का विनाश भी हुआ । महापद्म के सम्राट हो जाने से यह राजघराना नवीन नंद-वंझा होने से नवनंद-वंदा कहलाया । यहाँ नव से प्रयोजन नौ संख्या का न होकर नवीन का था कितु बहुतेरे लेखकों ने इससे संख्या ही का प्रयोजन लेकर इस वंश में महापद्मनंद तथा उसके आठ बेटों का एक दूसरे के पीछे शासक होना मान लिया । इस वंश का राज्य ८० वर्षे चला । यह घराना बड़ा धन-लोभी कहा गया है । महापद्म ने सारे जनपदों को नष्ट करके अपना साम्राज्य व्यास-नदी तक फेलाया । कुछ महाजनपद शिशुनाग-वंश के समय जीते जा चुके थे । शेष




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