वैदिक साहित्य और संस्कृति | Vedic Sahitya Aur Sanskriti

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Vedic Sahitya Aur Sanskriti by बलदेव उपाध्याय - Baldev upadhayay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम परिच्छेदु वेद का मद भारतीय संस्कृति के इतिहास में वेदों का स्थान नितान्त गौरवपूण है। श्रुति की ,इढ़ झ्राधारशिला के ऊपर भारतीय घर्म तथा सभ्यता का भव्य विशाल प्रासाद प्रतिष्टित है। हिन्दुओं के श्राचार-विचार; घम-कम को भली भॉति समझने के लिए वेदों का शान विशेष श्रावश्यक है । श्रपने प्रातिम चक्षु के सहारे साक्तात्कृतधर्मा ऋषियों के द्वारा श्रनुभूत श्रध्यात्मशास्र के तत्वों की विशाल विमल राशि का ही नाम “वेद” है। स्मृति तथा पुराणों में वेद की पर्याप्त प्रशंसा उपलब्ध होती है । मनु के कथनानुसार वेद पितृगशा, देवता तथा मनुष्यों का सनातन; सबंदा विद्यमान रहनेवाला चक्षु है। लौकिक वस्तुश्रों के साक्षात्कार के लिए. जिस प्रकार नेत्र की उपयोगिता है; उसी प्रकार श्रलोकिक तत्वों के रइस्य जानने के लिए वेद की उपादेयता है। इष्ट-प्राप्ति तथा के श्रलोकिक उपाय को बतलाने वाला ग्रन्थ वेद दी है। वेद का 'वेदस्व* इसी में है कि वह प्रत्यक्ष या श्रनुमान के द्वारा दुर्बोध तथा श्रज्ञेय उपाय का ज्ञान स्वयं 'कराता है । ज्योतिष्ठोम याग के सम्पादन से स्वग प्राप्ति होती है श्रतः वह ग्राह्म है तथा कलजझ्-भक्तण से की उपलब्धि होती है; श्रत एव वह परिद्दार्य है। इसका ज्ञान तार्किक-शिरोमणि भी हजारों की सहायता से भी नहीं कर सकता । इस श्रलौकिक उपाय के जानने का एकमात्र साघन हमारे पास वेद ही हे ।




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