कलकत्त्ता से पीकिंग | Kalkatta Se Piking

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Kalkatta Se Piking by भगवतशरण उपाध्याय - Bhagavatsharan Upaadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कल्लफत्ता से पीर्किंग.. ११ मुंह की चेष्टा बिगाड़ ओोठों को बिचका देते, ग्रिड़गिड़ाकर हाथ फेला देते ॥ एक लड़के ने, जिसकी पीठ पर एक बच्चा बंधा हुआ था, हाथ फैला दांत निपोरकर मुजसे अंग्रेज़ी मे নী पापा, नो सासा (न बाप है ने मो) । हॉगकॉस के सिलवसंगे भयावक है। आप भलला उठे, लाख भिड़कें, तड़पे, पर वे पिण्ड ते छोड़ेंगे, कम्बस्ती के शिकार, इन्सा- नियत क्ते पाप ! सहसः, निसिमात् मे, मुरज इड गया । रात कौ पहली छाया कावती हुई चराचरे के ऊपर से निकल गई--एक श्याल नीलाभ रेखा धायु के हलके कोरे से वोभ्क्लि ! पहाड़ी हाल पर बले खाड़ी पार के मकानों के अंसख्य दीप सहसा जल उठे । दीप बहाँ पहले भी थे, शायद स्रज डबने के पहुले भी, और जल भी रहे थे, केवल ग्रहपति के हतप्रभ होते ही उनकी पीली किरणों ने उन श्रसख्य विद्युत्‌ तारको को मरिन कर दिया धा! रान्निंने श्रमी श्रपन द्याम वसन धार नहु किया था, जिससे विदयुत-प्रकारा स्लन थे, पागल की दुष्टि-से-रिक्तं । उसडतो भीड को चुपचाप देख रहा था अनेक राष्ट्रो के लोग उसमें धें--बीसी, भलयवासो, इस्डोनेशी, विदेशी पर्यटंक--रवेत, पीले, गेहूँँए, चमकते रेदामी सुंट पहने, विधोषतः चीनों, पश्चिम से प्रभावित । उनके विपरीत बे थे पेबंदभरे कपड़े पहने, डरते फिरते, सुनी नजर फेकते, भिखमेगों सरीखे, पर भिखमभे वह ¦ फिर सेनिक, क्िटिश और আম रोकी । कुछ वे जो कोरिया के मोर्चे पर जा रहे थे, कुछ वे जो उस सोचें से दम लेने लौट रहे थे। चौसेनिक हाथ में हाथ दिये शराब की भन्ध से हुवा गन्दी करते, फूहड़ गाने गाते, बदतमीज, खतरसाक, कुछ भी कर बैठने वले। नारियां, जो चित्र-विचित्र लिबास पहने थीं, कौनी सलसल, पारदर्श रेशम, महीन लवेन ¦ पैसे मं सुनहरी जूतियां । श्रनजानः बुकतठा रह जाए कि इन कपड़ों का घतलब क्या था, वे क्ते क्ष्या थे ? उसका उद्‌ व्य भ्रति को यद एक भंगिमः ইলা धार जिस्म लागरर को एक




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